Book Title: Jain Padarth Vigyan me Pudgal
Author(s): Mohanlal Banthia
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 56
________________ ३८ जन पदार्थ-विज्ञान में पुद्गल विज्ञानने जिनमें से कुछ को पौद्गलिक वस्तुओ के रूप में ग्रहण कर लिया है। उदाहरण - (१) मन, (२) शब्द, (३) तम, (४) छाया, (५) तापआताप,(s)उद्योत-प्रकाश, (७) विद्युत, (८) उष्ण रश्मि, और (६) शीत रश्मि । शेप दोनो तेजस् लब्धि शरीर के भेद है। ये सब पौद्गलिक हैं। इनमें से मन को आधुनिक विज्ञान ने पौद्गलिक वोलकर घोपित नहीं किया है। क्योकि मन की गुण-दोष विचारणिका सम्प्रवारणा को पौद्गलिक मानने में आधुनिक विज्ञान को निश्चित प्रमाण नहीं मिला है। यह वात उल्लेख योग्य है कि आधुनिक विज्ञान मन-चेतनाको अभी तक विभिन्न गण्य करता है। अन्य द्रव्य और पुद्गल के गुण पुद्गल की परिभाषा में दिये गये गुणो में से२ - क-प्रथम गुण. द्रव्य-नित्य-अवस्थित। सभी द्रव्यो में १-परिणामी जीव-मुत्त सपदेत एय-खेत्त-किरियाय णिच्च कारणफत्ता-सन्बगदमिदरहियंपवेले ॥ दुणिय-एय-एय-पच-त्तिय-एय-दुण्णि-चउरोय पच य एयं-एवंएदेसं-एय-उत्तर-णेय ॥ -नवतत्त्व में तया वृहद् द्रव्यसग्रह में चूलिका रूप में। २-वृहद् द्रव्यसंग्रह में दी हुई उपरोक्त चूलिका की व्याख्या (संस्कृत) देखें।

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