Book Title: Jain Padarth Vigyan me Pudgal
Author(s): Mohanlal Banthia
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 55
________________ दूसरा अध्याय • पुद्गल के लक्षणो का विश्लेषण ३७ का आत्मा के एक ही प्रदेश के माय वन्वन होता है । इस अपेक्षा से अनन्तानन्त प्रदेशी वन्य कहते हैं । जीव को छोडकर अन्य चार द्रव्यो का कोई उपकार पुद्गल नही करता है । अन्य द्रव्यों से उपकार ग्रहण करता है । श्राकाश ने अवगाह में धर्म से क्रिया या गति में, अवर्म से स्थित या निष्कम्प होने में, तथा काल से परिणमन में उपकार ग्रहण करता है । क्योकि सर्व परिणमन या क्रिया ममय सापेक्ष है । उपचार से यह कहा जा सकता है कि उपकार ग्रहण करके पुद्गल इन चार द्रव्यो को स्व-स्वभाव में परिणमन करने में सहाय करता है । अन्य द्रव्यो का पुद्गल को यह ( अवगाहनादि ) उपकार - सहकार सक्रिय नही है । बल्कि पुद्गल निज के परिणमन के निमित्त उनके उपकार या महकार को ग्रहण करता है । चय, उपचय, अपचय, श्रायु, अन्तरकाल, अगुरुलघु, सूक्ष्म-स्थूल, सूक्ष्म-वादर भेद-उपभेद इत्यादि विपयो को हमने परिभाषा में नही रखा है उनका विवेचन पीछे करेगे । पुद्गल के उदाहरण इस परिभाषा की कसौटी पर कसे हुए कुछ पुद्गलो के उदाहरण यहाँ दिये जाते हैं । हम सामान्य उदाहरणो को नही दे रहे हैं बल्कि वे ही उदाहरण दे रहे है जिन पुद्गलो को अतीत में अन्य धर्मो ने पुद्गल वोलकर मान्य नही किया था वल्कि श्राधुनिक

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