Book Title: Jain Padarth Vigyan me Pudgal
Author(s): Mohanlal Banthia
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 64
________________ ४६ जैन पदार्थ-विज्ञान में पुद्गल उस स्कन्ध के उतने प्रदेश है । स्कन्धवद्ध होते हुए भी जो परमाणु प्रमाण निर्विभाज्य स्कन्ध का विभाग है, उसको प्रदेश कहते है । अविभाज्य पुद्गल को परमाणु कहते है । स्कन्ध, देश, प्रदेश, परमाणु को स्थूल भाव से इस प्रकार भी बतलाया जाता है । सर्वांश में पूर्ण परमाणुश्री के वद्ध समुदाय को स्कन्ध कहते हैं । उस स्कन्ध के प्राघे भाग को देश कहते है । उससे आधे भाग को प्रदेश कहते है । प्रविभागी भाग को परमाणु कहते है । पुद्गल के ६ भेद --- सूक्ष्म सूक्ष्म, सूक्ष्म, सूक्ष्म वादर, वादर सूक्ष्म, बादर और वादर वादर' । (ग) मे पुद्गल के सूक्ष्म वादर ये दो भेद कहे गये है | यहाँ इन दो भेदो का विश्लेषण कर ६ भेद कहे गये है । (१) सूक्ष्मात् सूक्ष्म-परमाणु ( ultimate atom ) को सूक्ष्म सूक्ष्म कहा गया है क्योकि प्रथमत यह अन्त्य सूक्ष्म है --- इससे सूक्ष्म और कोई पुद्गल नही है । द्वितीयत इसको प्रत्यक्ष से परमावधिज्ञानी तथा केवलज्ञानी ही जान सकते है । अन्य जीव कार्यलिंग की अपेक्षा अनुमान से जान सकते है । (२) उन सूक्ष्म पुद्गल स्कन्धो को जो अतीन्द्रिय (ultrasensual matters ) है सूक्ष्म कहते है । (३) सूक्ष्म-वादर नेत्र को छोड़कर चार इन्द्रियो के विपयभूत पुद्गल स्कन्ध को (ultravisible but intrasensual - १- वादर बादर, बादर, बादरहम च सुहुमथूल च । सुम च सुहुमसुम च धरादिय होदि छन्भेय ॥ -गोम्मटसार जीवकाण्ड गाया ६०२ ।

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