Book Title: Jain Padarth Vigyan me Pudgal
Author(s): Mohanlal Banthia
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 67
________________ तृतीय अध्याय पुद्गल के भेद-विभेद ४६ प्रकार स्कन्ध पुद्गल भी तरह-तरह की जाति के होते है। 'तत्त्वार्थ सूत्र के ५२२५ "प्रणव स्कन्धाश्च" सूत्र पर टीका करते हुए राजवातिक प्रणता ने लिखा है-"उभयात्र जात्यापेक्ष बहुवचनं-- अनन्त भेदा अपि पुद्गला अणुजात्या स्कन्धनात्या"। "अणव", "स्कन्या" इन बहुवचनात्मक शब्दो का व्यवहार इस सूत्र में जाति-अपेक्षा से किया गया है। अणु-जातियो, स्कन्ध-जातियो की अपेक्षा पुद्गल अनन्त भेदवाले होते है। उन्होने आगे लिखा है--"वैविध्यमापद्यमाना सर्वे गृह्यत इति तदजात्यावानन्तभेदससूचनार्थ बहुवचन क्रियते"। अणु तथा स्कन्ध इन दो भेदो में सभी पुद्गल ग्रहण हो जाते हैं, लेकिन इन दो भेदो की जातियों के आधार पर अनन्त भेदो को बतलाने के लिए ही मसूचनार्थ ही उपरोक्त तत्त्वार्थसूत्र में बहुवचनो का प्रयोग किया गया है। भावगुणाश से अनन्त भेद-पुद्गल के वर्ण, रस, गन्व, स्पर्श धर्मों में शाक्तिक तारतम्यता होती है। जैसे काले वर्णवाले पुद्गलो में कालापन सव में समान नही होता है। कोई एक गुण काला होता है (एक गुणकाला माने सव से हल्का कालापन, जिससे हलका कालापन फिर नहीं हो सकता है-अविभागप्रतिच्छेदी कालापन)। यह कालापन, ऐकिक (Untary) होता है। कोई दोगुण काला होता है। कोई दसगुण काला होता है। कोई सख्यात्गुण काला, कोई असख्यात्गुण काला, कोई अनन्तगुण काला हो सकता है। यह गुणो की तारतम्यता परमाणुओ तथा स्कन्धो दोनो में होती है। इस

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