Book Title: Jain Padarth Vigyan me Pudgal
Author(s): Mohanlal Banthia
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 59
________________ तृतीय अध्याय पुद्गल के भेद-विभेद पुद्गल अनन्त है। अनेक अपेक्षाओं में भी पुद्गल अनन्त है। द्रव्यत पुद्गल अनन्त है। गर्व पुद्गल प्रव्य देग गे अनन्त है। क्षेत्र देश गे भी, माल देश रो भी, भाव देग रो भी गव पुद्गत अनन्त है। इग द्रव्याथं गे अनन्त पुद्गल के भेद भी अनन्त है। यह अनन्त पुद्गल जाति-अपेक्षा गे अनन्त प्रकार के है। यह अनन्त पुद्गत भावार्थ से भी अनन्त प्रकार के है। यह अनन्त पुद्गल पर्यायार्थ में भी अनन्तानन्त प्रकार को है पयोकि पर्याय अनन्नानन्त है। अनेकान्तवादी जैन गिन-भिन्न अपेक्षायी गे १-चव्यानो ण पोग्गलत्यिकाए अणताइ दयाह । -भगयतीसूम २:१०:५७ २-दथ्य सेण सव्ये पोग्गला सपएसा वि अप्पाएसा चि, अणता; खेत्ता वेसेण वि एव चेव; फाल सेण यि, भाव देसेण यि एवं चेय। -भगवतीसूत्र : ८ . २ २-अनन्त भेवापि पुद्गला। --राणयातिकम् ५ : २५ : ३ ४-जात्याधारानन्तभेव ससूचनार्थ घयचन (अणय. रफान्धाश्च) नियते। -तत्त्यार्थसूत्र ५.२५ पर राजवातियाम् टीका पब ३ ५-भगवतीसय २५.४:४१ ६-भगवती सुम २५ : ४ : ६६, प्रज्ञापना सूत्र पव ३।

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