Book Title: Jain Padarth Vigyan me Pudgal
Author(s): Mohanlal Banthia
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 43
________________ दूसरा श्रध्याय पुद्गल के लक्षणो का विश्लेषण (२) एकसमयो विग्रह, लोकातप्रापिणि अपि, (३) परमाणेरनियता, २५. (४) चाल (क) जघन्य - एक समय में एक प्रदेश (ख) उत्कृष्ट — एक समय में लोकान्त से लोकान्त । -- (५) कम्पन क्रियाकाल -- ( क ) जघन्य - एक समय । (ख) उत्कृष्ट —— अविलि के प्रसखेय भाग, और (६) निष्कम्प ( निष्क्रिय) काल - (क) जघन्य -- एक समय । (ख) उत्कृष्ट --- प्रसख्येय काल । नियम सामान्य से पुद्गल की "देशान्तर प्रापिणि गति” अनुश्रेणी होती है। लेकिन प्रयोग परिणामवशात् विश्रेणी भी हो सकती है। पुद्गल की लोकान्तप्रापिणि गति नियम से अनुश्रेणी ही होती है । (देखो तत्वार्थं सूत्र अ २ सूत्र २७ तथा २६, तथा २७ की सिद्धसेन गणि टीका । पुद्गलानामपि गति स्थितीति । ) पुद्गल गलन मिलनकारी है . पुद्गल का नाम पुद्गल हुआ है' । वस्तु का नाम रखा भी जाता है। (१) पूरण (मिलन) तथा गलन स्वभाव के कारण ही स्वभाव तथा क्रिया के अनुसार पूरण का अर्थ मिलना और ८ १- पुद् गलशब्दस्यार्थी निर्दिष्ट पुगिलनात् पूरण गलनाद्वा पुद्गल इति । -- राजवार्तिकम् ५.१६.४० २ - पूर्यन्ते गलन्ति च पुद्गला घातोस्तदर्थातिशयेन योग मयुर भ्रमरादिवत् । - श्रुतसागरी वृति ।

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