Book Title: Jain Padarth Vigyan me Pudgal
Author(s): Mohanlal Banthia
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 25
________________ प्रथम अध्याय पुद्गल की परिभाषा पुद्गल क्या है ? १-द्रव्य है', नित्य तथा अवस्थित द्रव्य है। २-अजीव है। :-अस्ति है। पुद्गल कमा है ४-कायवाला है,'। ५-स्पी है तथव मर्त है। ६-क्रियावान् है। ७-गलन-मिलनकारी है। ८-परिणामी है। १-अजीवकाया धर्माधर्माकाशपुद्गला। द्रव्याणि जीवाश्च । -तत्त्वार्थसूत्र अ० ५ सूत्र १, २ २-नित्यावस्थितान्यरूपाणि च। रूपिण पुद्गला । तत्त्वार्यसूत्र प्र० ५ सूत्र ३, ४ ३-पच अस्थिकाया पण्णता-तजहा- Y x पोग्गलत्यिकाए। -भगवतीसूत्र श० २ उ० १० ४-(क) रुपिण पुद्गला ।-तत्त्वार्यसूत्र ० ५ सूत्र ४ (ख) पुग्गल मुत्तो रुवादिगुणो । वृहद् द्रव्य संग्रह गाथा १५ का अश। ५-पुद्गलजीवास्तु क्यिावन्त-तत्त्वार्यसूत्र अ०५ सूत्र का भाप्य। ६-पूरणाद्गलनाच्च पुद्गला ।-तत्त्वार्यसूत्र अ० ५ सूत्र १ पर सिद्धिसेनगणि टीका। ७-परिणामपरिणामिनो जीवपुद्गलौ स्वभावविभावपर्यायाभ्या कृत्वा, शेषचत्वारि द्रव्याणि विभावव्यजनपर्यायाभावान्मुख्यवृत्त्या पुनरपरिणामीनीति । बृहद् द्रव्य सग्रह पृ० ६७ रायचन्द जैन ग्रन्यमाला

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