Book Title: Jain Padarth Vigyan me Pudgal
Author(s): Mohanlal Banthia
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 27
________________ द्वितीय अध्याय पुद्गल के लक्षणों का विश्लेषण पुद्गल की सामान्य परिभाषा करते हुए उसके सम्बन्ध में जिन ११ वातो का उल्लेख किया गया है उनकी विस्तृत व्याख्या इस प्रकार है १ पुद्गल द्रव्य है . द्रव्य किसे कहते है? जिसके गुण और पर्याय हो उसे द्रव्य कहते हैं। द्रव्य में गुण और पर्याय दोनो का होना आवश्यक है। जो द्रव्य में रहते है, स्वय निर्गुण है, वे ही गुण कहलाते है। शक्ति विशेषो का ही नाम गुण है। लक्षणो को भी गुण कहते है। जिससे वस्तु की पहचान हो वह गुण है। ऐसा कोई द्रव्य नही जिसमें किसी तरह का गुण नहीं हो। गुण ध्रुव होता है। द्रव्य के गुण भदा द्रव्य में रहते है, मदा युगपद--स्थायीभाव से रहते है। द्रव्यो का स्वरूप गुणो में जाना जाता है। एक द्रव्य का दूसरे द्रव्य से विभेद उनके कतिपय गणो की १-गुणपर्यायवद्व्य म् । -तत्त्वार्थसूत्र अ० ५ सूत्र ३७ २-द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणा । --तत्त्वार्यसूत्र प्र० ५ सूत्र ४०

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