Book Title: Jain Padarth Vigyan me Pudgal
Author(s): Mohanlal Banthia
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 33
________________ दूसरा अध्याय पुद्गल के लक्षणों का विश्लेषण १५ है। अत परमाणु पुद्गल को उपचार से काय कहा है। ६ पुद्गल रूपी है' तथैव मूर्त है' . रुपादि स्पर्श, रस, गन्व, वर्ण सस्थान। गुणो में परिणमन के कारण पुद्गल रूपी तदर्थ मूर्त कहा जाता है। वर्ण, रस, गन्ध और स्पर्ण-ये रूप परिणामी गुण पुद्गल के लक्षण गुण हैं: जो गुण दूमरे में नहीं हो वह गुण लक्षण-गुण कहलाता है। जिससे लक्ष्य निर्दिष्ट किया जा सके वह लक्षण है। लक्षणगुण से ही एक वस्तु को दूसरी वस्तु से पृथक् किया जा सकता है। छ द्रव्यो मे केवल पुद्गल ही रूपी है। अन्य द्रव्य स्पी नहीं है। १-एयपदेसो वि अणु णाणाखधप्पदेसदो होदि बहुदेसो उवयारा तेण य कानो भणति सन्चएह ।। -बृहद् द्रव्यसग्रह सूत्र २६ २-रूपिण पुद्गला।-तत्त्वार्यसूत्र अ५ सू ४ रूपे मूर्ति सूत्र ३ के भाष्य में। ३-रूपशब्दस्याग्नेकार्थत्वे मूर्तिपर्यायग्रहण शास्त्रसामर्थ्यात् । -राजवार्तिक ५ ५.१ ४-रूपादिसस्थानपरिणामो मूर्ति । -तत्त्वार्यराजवार्तिक “रूपिण पुद्गला" सूत्र की व्याख्या में। ५-स्पर्शरसगन्धवर्णवन्त पुद्गला । -तत्वार्थसूत्र अ ५ सू. २३ ६-स्पर्श रस गन्ध वर्ण इत्येवंलक्षणा पुद्गला. भवन्ति । --उपरोक्त सूत्र का भाष्य । ७-लक्ष्यतेऽनेनेति लक्षणम् । सिद्धिसेन गणि वक्तव्य ।।

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