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नवीन जैन लेखकों के अनुसार ब्राह्मण और वैदिक धर्मशास्त्रों और पुराणों के प्रति लोग उदासीन हो रहे थे । अतिशयोक्तियों से परिपूर्ण कहानियों से ब्राह्मण ग्रन्थ भरे हुये थे- + । विमल सूरि के अनुसार वाल्मीकि रामायण के बहुत से अंश काल्पनिक और विश्वास योग्य नहीं हैं। अतएव उन्होंने पउम चरिउ की रचना की। इस रचना के पात्र विद्याधर, राक्षस और वानरवंश का परिचय देने के पश्चात् कथन करते हैं कि विजयार्द्ध की दक्षिण दिशा में रघनपुर नाम के नगर में इन्द्र नाम का विद्याधर रहता था। इसने लंका पर विजय प्राप्त किया और अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया। लंका के राजा रत्नश्रवा का विवाह कौतुक मंगल नगर के व्योम बिन्दु की छोटी पुत्री केकसी से हुआ था। रावण इनका पुत्र था। इसने वाल्यावस्था में बहुरूपिणी विद्या सिद्ध की थी और इस सिद्धि से संपन्न होने से अपने शरीर को विभिन्न रूपों में परिवर्तित करने की क्षमता रखता था। रावण और कुंभकरण ने लंका के राजा इन्द्र और प्रभावशाली विद्याधर वैश्रवण को परास्त कर अपना राज्य स्थापित कर लिया । खर दूषण रावण की बहन चन्द्रनखा का हरण कर ले गया और बाद में रावण ने अपनी बहन का विवाह खरदूषण के साथ कर दिया । वानर वंश के शासक वलि ने संसार का त्याग करके अपने छोटे भाई सुग्रीव को राज्य का कार्यभार सौंप कर दिगम्बर दीक्षा कर लिया और कैलास पर्वत पर तपस्या करने लगा। अयोध्या में भगवान ऋषभ देव के वंश में अनेक राजा हुये, सबने प्रब्रज्या ग्रहण कर तपस्या की और मोक्ष की प्राप्ति की । इस वंश के राजा रघु को अरण्य नामक पुत्र हुआ, इसकी रानी का नाम पृथवी मति था। इनके दो पुत्र हुये अन्तरथ और दशरथ । पउम चरिउ की विषय वस्तु के अध्ययन से ऐसा प्रतीत होता है कि ब्राह्मण और पौराणिक ग्रन्थों के विरुद्ध इस प्रकार के कथानकों को रचकर एक काल्पनिक कथावस्तु की रचना की गयी ।
जैन मुनियों को श्रृंगार की कथाओं के सुनने और सुनाने का निषेध था, परन्तु इसके विपरीत पाठकों को सामान्यतः ऐसी कहानियों को सुनने में श्रवण सुख की प्राप्ति होती थी । वासुदेवहिण्डी के रचयिता के विचार इस प्रकार है:
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