Book Title: Jain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Author(s): Pushpa Tiwari
Publisher: Ilahabad University

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Page 14
________________ हरिभद्र सूरि ने समराइच्चकहा में सामान्य रूप से अर्थ कथा, काम कथा, धर्म कथा और संकीर्ण कथा के भेद से कथाओं का विभाजन चार वर्गों में किया है।20' अर्थोपार्जन की ओर प्रवृत्त करने वाली कथा को अर्थकथा, काम की ओर प्रवृत्त करने वाली कथा को काम कथा, अन्त: करण और शरीर की कोमलता और सरलता (आर्जवम, मार्दवम) आदि की ओर आकर्षित करने वाली और धर्म के प्रति सच्ची निष्ठा और श्रद्धा उत्पन्न करने वाली कथा को धर्म कथा तथा धर्म, अर्थ, और काम से समावेशित कथा को संकीर्ण कथा कहा है। धर्म कथा के चार भेद बतलाये गए हैं :- आक्षेपणी, विक्षेपणी, संवेदनी और निवेदनी ।21" मन के अनुकूल विचित्र और अपूर्व अर्थवाली कथा को आक्षेपणी, कुशास्त्रों की ओर से उदासीन करने वाली मन के प्रतिकूल कथा को विक्षेपणी, ज्ञान की उत्पत्ति के कारण, मन को मोक्ष की ओर ले जाने वाली कथा को संवेदनी, तथा वैराग्य उत्पन्न करने वाली कथा को निर्वेदनी कथा कहा गया है। हेम चन्द्र आचार्य ने आख्यायिका और कथा में अन्तर स्पष्ट किया है ।2" आख्यायिका में उच्छवास होते हैं और वह गद्य में लिखी जाती है, जैसे हर्ष चरित कथायें गद्य और पद्य दोनों में पायी गयी हैं। ये कथायें संस्कृत, प्राकृत, मगधी, शौरसेनी, पैशाची और अपभ्रंश भाषाओं में लिखी गई है। उपाख्यान, आख्यान, निदर्शन, प्रवहलिका, मंधल्लिका, मणि कुल्या, परि कथा, खंड कथा, सफल कथा और बृहत कथा के ये भेद बतलाये गये हैं23 । हरिभद्र का धूर्ताख्यान हास्य, व्यंग्य और विनोद का कथा ग्रंथ है। हरिभद्र सूरि का उपदेशापद धर्म कथानुयोग की एक दूसरी रचना है। कुवलय माला के कथाकार उद्योतन सूरि (779 ई) एक समर्थ रचनाकार थे। सुदंसणा चरित्र के रचनाकार देवेन्द्र सूरि ने रात्रि कथा, स्त्री कथा, भक्त कथा और जनपद कथा नाम की चार विकथाओं का त्याग करके धर्म कथा के श्रवण को हितकारी बताया है। इसके अतिरिक्त जिनेश्वर सूरि का कथा कोष प्रकरण, नेमिचन्द्र सूरि और वृत्तिकार आम्रदेव सूरि का आख्यान मणि कोष, गुण चन्द्र गणि का कथा रत्न कोष तथा प्राकृत कथा संग्रह आदि की रचनायें कथाओं की भण्डार हैं। (8)

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