Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 07
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 455
________________ पृथ्वीचंद ने गुणसागरनुं चरित्र. ४४३ प्राप्त थाय ? परंतु पोतें मार्गनो अज्ञात बतां हुं मार्ग जाएं बुं, एम जाणी एमने एम जो चाल्योज जाय, तो ते दुःखीज थाय ? माटे हाल ते बेदु राजा पासें माफी मागवी, तेज उचित बे ? या प्रमाणें पश्चात्ताप करीने पोताना सुंदर नामा मंत्रीने जयराजा तथा मानतुंगराजा पासें मोकल्यो. ते त्यां यावीने विनति करी कहेवा लाग्यो के हे महाराज ! माहारा स्वामी राज शेखर राजायें विनति करी कहेराव्युं बे के में मूढबुद्धिश्री प्रापना कुसुमा युध पुत्र पर जे रणसमारंभ करखो वे, ते आपनो में महोटो अपराध कस्यो बे, तेथी ते अपराधने याप दमा करजो. याज दिवस पढी हवे हुं राज शेखर राजा अपनी सामो लडवा खावीश नहिं ? खने तेवी कोइ पण कालें पें शंका करवी नहि. ते सांजली जयराजा बोल्यो, के हे मंत्रिन ! तमारा स्वामी राजशेखरने तो एमज कहेतुं घटे वे, कारण के समजु माला सथी कदाचित् दुष्कृत थर जाय बे, तो पण ते पाठो तेनो पश्चात्ताप परायण थ जाय ले ? यावां वचन कही ते सुंदर मंत्रीनो वस्त्राभरण सामग्री थी सारी रीतें सत्कार कस्यो ने ते मंत्रीने राजशेखर राजाने ते डवा माटें मोकल्यो. तेथी ते राजशेखरराजा पण त्यां ग्राव्यो. पढी ते त्रणे राजाउ, एक उंची ने मनोहर भूमि हती, त्यां मव्या ने ति स्नेही निर्भरमनवाला थया. अने ते त्रणे राजाना पाला, हाथी, घोडा एकत्रज रहेवा लाग्या. तो पण ते एक बीजाने कांइ पण मनमा जुदाइ रही नहिं. धने तेनो यत्यंत प्रतिदिन स्नेह वधतोज गयो. हवे जे उंची भूमिमां ते मल्या हता, त्यां नगर वस्युं, तेथी ते नगरनुं, राजसंगम एवं नाम पड. ते पढी राजशेखर राजायें अत्यंत संतुष्ट थने ते कुसुमा युध कुमारने पोतानी बत्रीश कन्या परणावी. एक दिवस सौम्यताथी चंड्मा समान, सुतपना तेजथी सूर्यसमान, गांनीर्यथी सागरतुल्य, व्रतस्थिरतायें मेरुसरखा, रूपें करी कामसमान, मानरहित, केवलज्ञानी एवा कोइएक गुणसागर सूरीनामा मुनि, ते नगरना उद्यानमां समवसस्था ने सेवापर एवा देवोयें करेला सुवर्ण पंकजने विषे तेम पाच धावा. त्यारें वनपालकें खावी ते त्रणे राजाउने 3 धामणी यापी के हे महाराजा ! सहसाम्रवनने विषे सुर, असुर, नर, तेना निकरोयें जेमनां चरणारविंद सेव्यां बे एवा गुणसागर सूरीं नामा केवली

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