Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 07
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 497
________________ पृथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. नए के झुं थयुं ? ते कहे. अने हे पुत्र ! जे कारणथी तारा मनमां दुःख थयु होय, ते कहे. अने तुं जेम कहीश, तेम ढुं करी आपीश ? ते सांजली गुण सागर कुमार बोल्यो के हे पिताजी ! मोहना औत्सुक्यथी सुखने देनार, अति मूर्खजनने प्रिय, फुःखना मूलनूत, एवा नोगने विषे तो रोगनी पढें मारूं मन, कोई दिवस आसक्त थातुंज नथी. कारण के में पूर्व घणांक सुखो, देव लोकोने विषे जोगव्यां , तो पण हजी मारी तृप्ति थइ नथी. तो तुब एवा आ लोकना नोगथी तो गुंज तृप्ति थवानी ले ? काहिं नहिं. अर्थात् देवलोकोना नोगो मारा मनने हरण करी शक्या नहिं, तो वली याबीनस एवा मनुष्यनोगो, ते झुं मारा मनने वश करी शकशे? अने जे कोइ कालें अमृत, पण पान करता नथी, ते अ॒ विपनुं पान करशे ? अने हे पिताजी! जो तमो मारा मनोरथज पूरवानी इवा करता हो, तो मने आप आनं दथी श्रामण्य लेवानी रजा आपो. के जेथी ढुं मनोहर एवा श्रामण्यने स्वीकारूं? हे तात! हाल रस्तामां गोचरीयें जाता एवा मुनिने जोड्ने पूर्व नवोमां जे में घणाक काल चारित्र पाल्युं , ते मने हाल स्मरण थ आव्युं ने, तेथी हवे आ गहन एवा संसारने विपे एक कण वार पण हूँ रहेवाने शक्य नथी. जेम श्वेतपदवालो हंस , तेने जो मानसरोवरनो योग मने, तो पबीते कोइ दाहाडो बीजा पदार्थ, अवलंबन मागे? ना नज मागे. अने वली ते मानसरोवरने मूकीने पोतानी नत्तमवर्णवाली पां खोने कचरामां बोलवा ले ? ना नज . तेम ढुंबावा सारनूत संयमने बोडी कादधसमान संसारमा कोइ दाडो यासक्त था ? ना नज था ? आवां वचन सांजली तेनो पिता कहेवा लाग्यो के हे पुत्र था तुं गुं बोले ? अरे आम तने कोणे जरमाव्यो के ? शुं हाल तारो संयम लेवानो वखत ने ? ना. जोने विज्ञान लोकोयें मनुष्यने पोतानी आयुष्यना त्रण नागमांत्रण वर्ग, यथासमय साधवानुं कर्तुं जे. तेमां एक अर्थ, बीजो काम, त्रीजो मोद. तेमां बुद्धिमान् मनुष्ये प्रथम युवावस्थामां तो अर्थ अने काम ए बेज साधवा. पढ़ी ज्यारे प्रौढावस्था थाय, त्यारें मुक्तनोग एवा प्राणीने धर्माराधन करवं. कहेलु के के ॥ श्लोक ॥ प्रथमेनार्जिता विद्या, हितीये नार्जितं धनम् ॥ तृतीयेनार्जितोधर्म, चतुर्थे किं करिष्यति ॥ १ ॥ अर्थःमनुष्यने प्रथम वयमां विद्या संपादन करवी, बीजी युवावस्थामां धन संपा

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