Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 07
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 499
________________ टथ्वीचं अने गुणसागरनुं चरित्र. ४७ आ प्रकारे ते गुणसागरनो संयम लेवानो अत्याग्रह जाणीने ते रत्न संचय श्रेष्ठी कांड पण बोलवा समर्थ थयो नहिं. त्यां तो वली त्यां बेठेली ते गुणसागरनी माता, रुदन करती कहेवा लागी, के हे पुत्र ! आ शुं कहो बो ? झुं अमो बेग तमो दीक्षा लीयो ? हा ! ते केम बने? वली हे वत्स ! मारा मनरूप पृथ्वीने विषे, “आ सत्पुत्रथी मने सर्व ला न थाशे” एवी आशारूप डुम उत्पन्न श्रयो ने, अने ते डुमने तमोयें विन यरूप जलथी सिंची महोटो पण कस्यो ,तो तेने या संयम लेवा जवा रूप प्रतिकूल पवनथी हाल नबेद करवा केम धारो बो ? अने हे पुत्र ! तमारा विना मारूं था हृदय, पाकेला फलनी पहें तुरत फाटी जाशे ? वली हे वत्स! तम जेवा सत्पुत्रने अमारा जेवां जराजर्जरित माता पिताने बोडी नागी जावू नचित ? ना नथीज. माटे हे नंदन ! जाजी तृष्णायें उमेरेला एवा तमोयें अमारु पालनज करवं. हे पुत्र! अमारे तो जे कांक हे, हतुं, ते कयुं. हवे जेम तमारा मनमां आवे,तेम करो. ते सांजली गुण सागर कुमार बोल्यो के हे माता! जे कांइ तमोयें कह्यु, ते सर्व सत्य जे. परंतु मृत्युनो का नियम छे ? ना नथीज. जुन, ते मृत्यु क्यारेक बालक होय, तेने लइ जाय , अने वृक्ष, तथा रोगी होय, तेने रहेवा दे .माटें जो ते मृत्यु मित्र होय, अथवा जे माणस एम जाणतो होय, के हुँ अमर बो, तो ते प्राणीने संयम लेवामां प्रमाद करवो नचित . वली हे मात ! तमारा कहेवाथी कदाचित् ढुं धर्माचरणमा आलस्य राखं, अने एमने एम मने काल लइ जाय, तो पा वली मुने संसार व्रमण तो नचुंज रहे ? आ अनादि एवा असार संसारने विष कर्माधीन एवा जीवो अनंती वार पिता, माता, पुत्र, नगिनी, नाइ, शत्रु, मित्र, कलत्र, स्नेहीप गाने पाम्या हो ? तो ते जीवो मांहेलो ढुं पण बौं. अने तमें पण बो. तो तेमां वली मारे माटे अवडो महोटो खेद शा माटे करो बो ? अने हे जननि ! तमोने एक लौकिक दृष्टांतथी पूढे बुं, के कोशएक माता हती, ते पोताना कुमारपुत्रने लश्ने एक सरोवरमां वस्त्र धोवा गर, ते पुत्रने सरोवरना कांठापर बेसास्यो. पनी पोतें वस्त्र धोवा लागी. त्यां तो साथें आवेलो ते पुत्र, सरोवरमां नाहावा पड्यो, अने नाहातां नाहातां पागल जतां खाडो थाववाथी ते खाडामां मुबवा लाग्यो. तेने सुबतो जोश

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