Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 07
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 488
________________ ४७६ जनकया रत्नकाप नाग सातमा. जोयेली पोताना घर आगलनी नूमिने खोदवा लाग्यो. त्यारें तो ते स्व जन वगेरे सदु कोइ उन्ना रही बवा लाग्यां, के हे ना! या झुं खोदवा मांमधु ? त्यारे ते केशव बोल्यो के या पृथ्वीनी अंदर मारु सारनूत इव्य जे. त्यारे लोकोयें पूज्युं के आहीं क्यारें, केटलु, तथा कोणे माटेचु के ? त्यारे केशव बोल्यो के, ते कांही ढुं जाणतो नथी. परंतु ढुंज्यांव्य कमावा गयो हतो, त्यां रस्तामा एक गाम आव्युं हतुं. ते गाममां एक वड हतो, तो ते वडने सारो जाणीने तेनी बाया नीचे ढुं सूतो हतो.त्यां सूतांसूतां में जोयुंहतुं. त्यारे ते लोकोयें पूज्युं के जे वखतें तें व्य जोयुं, ते वखत केम न लीधुं ? त्यारे ते जड बोल्यो के हुँ ज्यां लेवा तैय्यार थयो, त्यां तो मने कोश्क गधेडे नूंकीने जगाज्यो. आवां सांजली सदुकोइ कहेवा लाग्यां के अहो! आ केशव तो महामूढ देखाय ले. कारण के आ सर्व स्वप्नमां जोयेला व्यन सत्य मानी तेने खोदी ने काढवा श्छे ले ? एम कही महोटो कोलाहल करी पर स्पर ताली द खड खड हसी, ते केशवने धिक्कार दक्ष, सदु को लोको चाल्यां गयां. त्यारे तेनी कपिला स्त्रीये पण क्रोधायमान था दार कादवनी मूठी जरी, तेना माथा पर नाखी. अने तेने खूब धिक्कास्यो. एटलां वानां थयां, तो पण ते पाबो खोदतो बंधथयोन हिं. त्यारें पबीघक खोदावाथी ते घरनी एक दम जीत पडी, तेथी ते केशवनी कड नांगी गइ. अने ते महाऽर्दशाने पाम्यो. _ यावां वचन सांजली पृथ्वीचंनी सर्वस्त्रीयो, लाज मूकीने खड खड हसवा लागीयो. त्यारे पृथ्वीचंद कुमार बोल्यो के हे बटुक ! तमें साधु कहेजो. के ए केशव बटुकनुं या सर्व चरित्र हास्य करवा जेतुं छे, के नहिं ? त्यारें हास्य करतो एवो ते विष्णु बटुक बोल्यो के हे स्वामिन् ! हा, ते मूर्ख एवा केशवबटुक, या सर्व चरित्र हास्यास्पदज जे. परंतु हे कुमार! आपने ढुं पूर्बुडं, के या संसारमा सर्वलोको ते मूर्खबटुक समान छे, एम केम कहेवाय ? त्यारे पृथ्वीचं कुमार कहे , के हे बटुक ! या संसारी जीवो जे , ते सर्व केशव बटुक समानज ले. कारण के ते पण केशवनी पर्नु कार्याकार्य, के हिता हित, कांश जाणताज नथी. वली जुन. ते मूर्ख एवा केशवनी अने संसारी जीवनी तमने हुं समानता कटुं . केा संसारी जीव जे , केशवनी पढ़ें चोराशी जीवायोनिचमणरूप निख मागवामां ने नोख मागवामांज पोता नो सर्व काल गमावे . वली संसारी जीव, कर्मपरिणतिरूप कपिला स्त्रीने

Loading...

Page Navigation
1 ... 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517