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जैन जगती
* अतीत खण्ड*
१४५ १४६ १४७ १४८ १४९ १५० वादीन्द्र, वादी, हेम, हरि, श्रीपाल, परिमाल हो चुके, कविवर धनंजय'५', वनस्वामो५२ से विशारद हो चुके । ज्योतिष, गणित, श्रति शास्त्र के ये सब प्रवर परिडत हये; इनका सदय साहित्य पाकर आज हम मण्डित हुये ॥१५४।। अकलंक'५३, कविपति वाग्भट'५४ को भूल हम किसविध सकें ? क्या बोद्ध उनके सामने शास्त्रार्थ में थे टिक सके ? कवि भूप कालीदास हल जिस प्रश्न को नहिं कर सकेउस प्रश्न को धनपाल'५५ कविवर सहज ही थे कर सके ।।१५।। कविवर दिवाकर ग्रन्थ कितने कुल मिलाकर लिख गये ? इतने कि जितने विश्वभर के कवि मिलाकर लिख गये। कविभूप कालीदास, होमर शेक्सपीयर मान्य हैं; श्रीमाल1५६, मण्डन'५७, चक्रवर्ती ५८ भी न पर अवमान्य हैं।
||१५६॥ प्रानन्दघन'५९ के काव्य की रस युक्त रचना लेखिये; बम सूर-तुलसी-सा मजा इनके पदों में देखिये । कविराज जटमल १६० की 'लता' है आज भी लहरा रही; पर गन्ध उसकी हम अभागों को न कुछ भी आ रही ॥१५७|| प्राचार्य आत्मारामजी' ६१ कुछ वर्ष पहिले हो गये; पंडित यशोपाध्याय जी'६२ शतप्रन्धकर्ता हो गये। क्या सूरिवर राजेन्द्र १६३ को यह जग नहीं है जानता ? इनके विनिर्मित कोष की कितनी बड़ी है मान्यता ॥१५८||