Book Title: Jain Jagti
Author(s): Daulatsinh Lodha
Publisher: Shanti Gruh Dhamaniya

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Page 270
________________ जैन जगती, SNORIEScene परिशिष्ट कुल्हाड़ा लेकर उन तापस कुमारों को मारने दौड़ा। बड़े वेग से दौड़ रहा था कि अचानक ठोकर खाकर गिर पड़ा और कुल्हाड़ा की धार से इसका शिर कट गया। यह तब मर कर सर्पयोनी में उत्पन्न हुआ और इसी बन में रहता था। इसकी भयंकर फुत्कार से वह बन सदा गूंजता रहता था। वृक्ष सब जल गये थे । पशु पक्षी उस बन में पद तक नहीं रखते थे। ऐसे बिहड़ बन में जहाँ चण्डकौशिक का एक छत्र साम्राज्य था भगवान कायोत्सर्ग में रहे । चण्डकौशिक ने भगवान को तीन बार डसा लेकिन फिर भी भगवान को अचल देखकर यह विस्मित हुआ और भगवान से क्षमा-निवेदन करने लगा । निदान भगवान ने इसको ज्ञान दिया और यह फिर मरकर देवलोक में देवता रूप से उत्पन्न ___ ३०८-एक समय भगवान महावीर एक बन में कायोत्सर्ग में खड़े थे। वहीं पर एक ग्वाला अपने बैल चरा रहा था। कुछ कार्यवश वह ग्वाला अपने बैलों को वहीं छोड़ कर कहीं चला गया । जब ग्वाला वापिस उस बनतल में पाया तो वह वहाँ बलों को न देख कर भगवान् को अपशब्द कहने लगा, भगवान् अचल रहे । ग्वाला अपने बैलों को ढूँढ़ता हुआ इधर-उधर घूमने लगा। थोड़ी देर में बैल पुनः वहीं आगये। ग्वाले ने अपने बैलों को भगवान् के पास जुगाली करते हुये खड़े देखा । ग्वाले ने भगवान् को चोर समझा और उसने भगवान के दोनों कानों में तीखे तीखे कीले कठोर पत्थर की मार मारते हुए ठोके । परन्तु भगवान अडिग रहे । थोड़े समय पश्चात् उस स्थान पर दूसरे २४६

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