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जैन जगती
•परिशिष्ट.
३०५-सम्राट चन्द्रगुप्त ने विमलाचल की संघ-यात्रा की थी। इसी प्रकार महाराजा कुमारपाल ने, उदयन ने, शांतनिक और चंपानरेश दधिवाहन ने भी संघ निकाले थे। जूनागढ़ की तलेटी में सरवर सुदर्शन प्राया हुआ है। इसका जीर्णोद्धार राजा चन्द्रगुप्त, सम्प्रति, कुमारपाल ने करवाया था। ___३०६-यह तो प्रायः सभी को विदित है कि भगवान पार्श्वनाथ के समय में हिंसावृत्ति अधिक बढ़ गई थी और भगवान् महावीर के अवतरण के समय तो यह चरमता को प्राप्त हो गई थी। यहाँ यह लिखने की आवश्यकता नहीं कि भगवान पार्श्वनाथ और महावीर ने इस हिंसा प्रचार को कहाँ तक निःजड़ किया। परन्तु इतना अवश्य कहेंगे कि अगर ये विभूतिय नहीं हुई होती तो सम्भव है आज भारतवर्ष समूल हिंसक मिलता । __ ३०७-चण्डकौशिक-यह पूर्व भव में क्षमक था । यह मर कर फिर कनकबल आश्रम के अधिष्ठाता की स्त्री के गर्म से पुत्ररूप से उत्पन्न हुआ और इसका नाम कौशिक रक्खा गया। यह अति क्रोधी था अतः इसे तापसगण चण्डकौशिक कह कर पुकारते थे। अपने पिता के मरण के पश्चात् इसने सव तपस्वियों को आश्रम से बाहर निकाल दिया और जो कोई भी नर, पशु, जीव उस बनखएड में आ जाता यह उसे भारी मार मार बिना नहीं छोड़ता। इस प्रकार यह अपना जीवन बिताने लगा। एक दिन यह कहीं आश्रम से बाहर गया हुआ था कि पीछे से कुछ तापस कुमारों ने इसके उपवन को नष्ट-भ्रष्ट कर डाला | जब यह वापिस पाया और अपने उपवन को नष्ट-प्राय देखा तो हाथ में