Book Title: Jain Jagti
Author(s): Daulatsinh Lodha
Publisher: Shanti Gruh Dhamaniya

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Page 273
________________ * जैन जगती * உன்புபாரிசே side * परिशिष्ट ३३० - नृपकल्कि - यह अवन्ती का राजा था । यह हिन्दूधर्म का कट्टर अनुयायी था । इसने जैन एवं बौद्धों के ऊपर अकथनीय अत्याचार किया था । ३३१ - यह नंबर भूल से 'दुष्कृत्य' पर लग गया है । ३३२ - पुष्यमित्र - यह शुंगवंश में आदि और प्रसिद्ध राजा हुआ है। यह विक्रम की द्वितीय शती में हुआ है । यह भी हिन्दुधर्म का कट्टर पक्षपाती था । इसने मतद्वेष के कारण जैन राजाओं के प्रसिद्ध नगर पाटलीपुत्र को जला दिया था । इसने अपने देश में जैन साधुओं का आगमन रोक दिया था । ३३३ - महात्मा गौतमबुद्ध - ये बौद्धधर्म के आदि प्रवर्तक माने जाते हैं । ये भगवान् महावीर के समकालीन थे। इन्होंने भी द्विजों की हिंसावृत्ति का प्रबल खण्डन किया था । आज बौद्धमत संसार के एक तिहाई भाग पर फैला हुआ है । ३३४ देखो नं० २ ३३५ देखो नं० ३२२ ३३६ -- औरंगजेब - यह बड़ा अत्याचारी मुगल सम्राट था । इसने जैन-धर्म के उत्सव, मेले, वरघोड़े रथ यात्राओं पर रोक लगा दी थी । कितने ही मंदिर मस्जिद बनवा दिये गये थे । ३३७-३८ - लार्ड-परिषद् - यह विलायत में एक सभा है । इसे अंग्रेजी में हाउस ऑफ लार्डस् कहते हैं । भारतवासियों को अपने अभियोगों की, स्वत्वों की अंतिम प्रार्थना इस परिषद् के समक्ष करनी पड़ती है और इस परिषद् का किया हुआ न्याय सर्वोपरि एवं अंतिम होता है । हम श्वेताम्बर और दिगंबर सम्मेतशिखर के मुकद्दमे में लार्ड परिषद तक बढ़ चुके हैं। २५२

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