Book Title: Jain Jagti
Author(s): Daulatsinh Lodha
Publisher: Shanti Gruh Dhamaniya

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Page 271
________________ जैन जगतो * परिशिष्ट मनुष्य आये और उन्होंने भगवान् के कानों में से कोले खींचकर बाहर निकाले । ३०६-३२०-इन सब की वैसे संक्षिप्त टिप्पणिये ऊपर दी जा चुकी हैं । यहाँ इनका विस्तृत इतिहास देने का विचार था और इसी ध्येय से इन्हें अंकित किया गया था। लेकिन कागज के भाव बढ़ जाने के कारण इस समय हम इनका परिचय इतिहास नहीं देंगे। हो सका तो द्वितीय संस्करण में इनका वर्णन सविस्तार किया जायगा। ३२१-तुगलकवंश के बादशाह जैनाचार्यों के संयम की बड़ी प्रशंसा करते थे। मुहम्मद तुगलक सोमतिलकसूरिजी का बड़ा सम्मान करता था। ३२२-मुगल बादशाहों में से अकबर, जहाँगीर और शाहजहाँ ने जैनाचार्यों का कितना सम्मान किया है, इतिहास साक्षी है। बादशाह अकबर के ऊपर हीरविजयसूरिजी का गहरा प्रभाव था । खास मुसलमानी-पर्वो में भी बादशाह शाहीफरमान निकाल कर दया-धर्म पलवाता था। ३२३-फ्रांसीसी डाक्टर गिरनार, जर्मन डा० जान्सहर्टल, जेकोबी, डा० फ्यूहरर, ब्लोंच, स्मिथ, फरग्यूसन आदि अनेक यूरोपीय महान विद्वानों की जैन-धर्म के प्रति गहरी श्रद्धा रही है। और इन सब ने जैन-धर्म और इसके साहित्य-कला पर गहरा लिखा है। ३२४-जयचंद-यह कन्नौज का राजा था और पृथ्वीराज का कट्टर शत्रु था। इसने मुहम्मद गौरी को हिन्दुस्तान पर

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