Book Title: Jain Jagti
Author(s): Daulatsinh Lodha
Publisher: Shanti Gruh Dhamaniya

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Page 267
________________ जैन जगतो. • परिशिष्ट . स्वर्ण-मुद्राओं के पति थे। इनके गोकुल में ४०००० गौएँ थीं। ये जहाजों द्वारा व्यापार करते थे। ये वाणिज्य प्राम के निवासी थे और भगवान महावीर के मुख्य श्रावकों में थे। २८४-सदालश्रेष्टि-ये जाति के कुम्भकार थे। भगवान महावीर के मुख्य श्रावकों में थे। ये तीन करोड़ स्वर्ण-मुद्राओं के अधिपति थे और इनकी दुकानें अनेक देशों में थीं। इनकी बड़ी २ दुकानें ५०० थीं। २६०-महाशतक-ये भी भगवान महावीर के मुख्य श्रावक थे। ये २१ करोड़ स्वर्णमुद्राओं के स्वामी थे और इनके गोकुल में ८०००० गौएँ थीं। ये राजगृही के रहने वाले थे। २६१-चुल्लणीशतक-ये भी भगवान महावीर के मुख्य श्रावक थे। ये १८ करोड़ स्वर्ण मुद्राओं के स्वामी थे। इनके गोकुल में ८००० गौएँ थीं। २१२-जिनदत्तश्रेष्ठि-ये महा धनकुबेर श्रेष्ठि थे। ये सोपारपुर के रहने वाले थे । ये वजूमेन सूरि के समय उपस्थित थे। २६३-धनाश्रेष्टि-इनकी कथा सर्वाधिक सर्वत्र प्रसिद्ध है। ये भी बड़े धनान्य थे। इन्होंने रिद्धि-सिद्धि छोड़ दीक्षा महण की थी। २६४-शालिभद्र-ये भी अतुल वैभव के स्वामी थे। इन्होंने भी समस्त रिद्धि-सिद्धि को छोड़कर संयम व्रत ग्रहण किया था। २६१-जगहूशाह-माहिलपुर (पाटण) के महाराजा

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