Book Title: Jain Jagti
Author(s): Daulatsinh Lodha
Publisher: Shanti Gruh Dhamaniya

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Page 251
________________ जैन जगती.. MINORTH •परिशिष्ट प्रमुख प्रन्थ है। राजा कुमारपाल के समय में इसी नीति के अनुसार शासन-सूत्र था । १६२-धर्माभ्युदय-यह उदयप्रभसूरिकृत महाकाव्य है। १६३-६४-विक्रान्तकौरव तथा मैथिलीकल्याण-ये दोनों उच्चकोटि के नाटक ग्रंथ हैं। १६५-पुरुदेवचंपू-यह महाकाव्य है। चंपू उच्चकोटि का है। १६६-यशस्तिलक-यह चंपू है और सोमदेव कृत है। यह ग्रन्थ हवीं शती में लिखा गया था। १६७-शाकटायनव्याकरण-महर्षि शाकटायन वैयाकरण विरचित है जो पाणिनि से भी पूर्व हो चुके हैं। दुनिया इन्हें अब तक जैनेतर विद्वान मानती थी लेकिन अब यह सर्व प्रकार सिद्ध होगया कि शाकटायन जैन थे। मद्रास कालेज के प्रोफेसर मी० गुस्ताव प्रापटे शाकटायन को जैन मानते हैं और पाणिनि से पूर्व इनको उपस्थिति स्वीकार करते हैं। प्रसिद्ध ग्रन्थकार बोपदेव का भी ऐसा ही मंतव्य है। १९८-पातंजलि के पश्चात् प्रसिद्ध वैयाकरण आचार्य हेमचन्द्र ही माने जाते हैं। इनका बनाया हुआ व्याकरण साहित्य में अत्यधिक आदरणीय है। १६६-संस्कृत-संस्कृत से यहां अर्थ लौकिक संस्कृत से है जो आदि प्राकृत का अन्यतम शुद्ध रूप कही जाती है। . २००-आदि-प्राकृत-आदि-प्राकृत से उस भाषा का अर्थ है जो अनार्यों के आगमन पर बनी। अर्थात् वैदिक-भाषा अनार्य-भाषा के साथ मिलकर जिस स्वरूप को प्राप्त हुई वही २३०

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