Book Title: Jain Jagti
Author(s): Daulatsinh Lodha
Publisher: Shanti Gruh Dhamaniya

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Page 249
________________ *जैन जगती * परिशिष्ट १७३ – पयन्ना - चउशरण (चतुःशरण), भाउर पञ्चकखाण ( श्रातुरप्रत्याख्यान ), भत्तपरिएगा ( भक्तपरिज्ञा ) इत्यादि १० पयन्ना ग्रन्थ हैं । १७४ -- छेद सूत्र -- निसीह (निशीध ), महानिसीह ( महानिशीध ) ववहार ( व्यवहार ) इत्यादि छह छेद-सूत्र हैं । १७५ - चार मूलसूत्र - उत्तरज्जयण ( उत्तराध्ययन ), आवइस (आवश्यक) इत्यादि चारमूल-सूत्र है । नंदीसुत ( नंदीसूत्र ), अणुयोगदारसुत्त ( अनुयोगद्वार - -सूत्र ) ये दो चूलिका - सूत्र हैं । १७६ -- गोमठ सार - यह एक अमूल्य धार्मिक ग्रन्थ है । इसका सर्वत्र जैन समाज में ही नहीं वरन समस्त धर्म-संस्थाओं में सम्मान है । १७७ - नवतत्त्व - यह ग्रन्थ अवलोकनीय है । जैन विद्वानों नेव माने हैं और इस ग्रन्थ में उनका बड़ा सुन्दर विवेचन दिया गया है। १७८ - तत्त्वार्थाधिगमसूत्र -- इस ग्रन्थ के रचयिता प्रसिद्ध ऊमास्वातिवाचक हैं | इसका जैन दर्शनों में ही नहीं सर्व भारतीय दर्शनों में एक विशिष्ट स्थान है । १७६-भव-भावना- यह एक धार्मिक ग्रन्थ है । इसके कर्ता प्रसिद्ध विद्वान् मल्लधारी हेमचन्द्र सूरि हैं । १८० - जीवानुशासन - यह भी धार्मिक ग्रन्थ है । १८१ - पुष्पमाला - यह भी धार्मिक ग्रन्थ है । इस ग्रन्थ में धार्मिक उपाख्यानों, उपदेशों का प्रशस्त संग्रह हैं । २२६

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