Book Title: Jain Jagti
Author(s): Daulatsinh Lodha
Publisher: Shanti Gruh Dhamaniya

View full book text
Previous | Next

Page 250
________________ जैन जगती परिशिष्ट . १८२-द्वादशकुलक-यह भी एक धार्मिक प्रन्थ है। १८३–निर्वाणकलिका—यह भी एक धार्मिक ग्रन्थ है । यह आचार्य पादलिप्तसूरि-कृत है। १८४-भावसंग्रह-यह भी धार्मिक ग्रंथ है। यह देवसेन भट्टारक का बनाया हुआ है। १८५-सप्तभंगी न्याय-यह न्याय का उच्चकोटि का ग्रन्थ है। इसका सर्वत्र अतिशय संमान है। ऐसे ग्रन्थ न्याय-विषय में अति थोड़े हैं। १८६-याद्वादरत्नाकर-यह न्याय का अद्भुत प्रन्थ है। इसके रचयिता प्रसिद्ध आचार्य वादीदेवसूरि हैं। यह प्रन्थ १३ वीं शती में लिखा गया था । १८७-न्यायालोक-यह भी न्याय विषय का बृहद् ग्रंथ है। १८८-प्रमेयकमलमार्तण्ड-जैन-दर्शन का यह बहुत ही विलक्षण और उच्चकोटि का न्याय ग्रंथ है। यह प्रभाचन्द्राचायविरचित है। १८६-पुराण-हरिवंशपुराण, पद्मपुराण श्रादि १३ पुराण हैं। इन सबमें जैन-इतिहास संकलित किया गया है। १६-त्रयषष्ठिशलाकापुरुष-चरित्र-यह मूल संस्कृत में हेमचन्द्राचार्यकृत है। इसमें २४ तीर्थकर, १२ चक्रवर्ती, १ बासुदेव, । प्रतिवासुदेव और बलदेव ऐसे कुल ६३ महापुरुषों का जीवन-चरित्र है। १६१-महनीति-यह हेमचन्द्राचार्यकृत राजनीति का २२६

Loading...

Page Navigation
1 ... 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276