Book Title: Jain Jagti
Author(s): Daulatsinh Lodha
Publisher: Shanti Gruh Dhamaniya

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Page 264
________________ • परिशिष्ट . कुतुबशाह ने सौराष्ट्र विजय करने को अपनी प्रबल सेना भेजी। लेकिन इन दोनों भाइयों की तलवार का वार तुर्क न सह सके और भाग खड़े हुए। ये वीर होने के साथ ही बड़े दानो एवं धर्मात्मा थे। इन दोनों भाइयों ने अपने जीवन काल में १३१३ नव्य जैन मन्दिर बनवाये । ३३०० जैन-मन्दिरों का जीर्णोद्धार करवाया। ५०० पौषधशालायें बंधवाई। सात कोटि सुवर्ण मुद्रायें खर्च कर पुस्तकें लिखवाई और अगणित कुएं, तालाब, धर्मशालाएँ, दानशालाएँ बनवाई। पैसे का सदुपयोग ऐसा अाज तक शायद ही किसी ने किया हो । २७५-देखो नं०२७४ । २७६-भैषा-शाह-ये महा पराक्रमी एवं दानवीर शाह थे। ये माण्डू के रहने वाले थे। इनकी हवेली माण्डू में आज भी इनके वैभव की स्मृति कराती है । २७७-रामाशाह-ये भेरुशाह के भाई थे। भूल से इनको भैषाशाह का भाई कहा है। रामाशाह कितने पराक्रमी थे, निम्न पद्य से देखिये जो एक कनि ने इनकी प्रशस्ती में कहा है:से कछवाहा, जोधक, जादौ, भारथ जोगै भीक भला। निरवाण, चौहान, चन्देल, सोलंकी,देल्ह, निसाण, जिके दुजला ॥ बड़गूजर, ठाकुर, छछर, छीमर, गौड, गहेल, महेल मिली। दरवारि तुहारे रामनरेसुर सेवे राज छतीस कुली ।। जै० जा०म०प्र० चोथा। १५-श्री कर्मसी-निम्न पद्य से श्री कर्मसिंह का भो परिषद पालीबियो

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