Book Title: Jain Jagti
Author(s): Daulatsinh Lodha
Publisher: Shanti Gruh Dhamaniya

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Page 257
________________ जैन जगती परिशिष्ट वती नगर है यह वह प्राचीन अमरावती नहीं है जिसका जैन इतिहास की दृष्टि से भारी महत्त्व है । २२७ - मैसूर राज्यान्तर्गत बेलग्राम में एक जैन मूर्ति ५७ फीट ऊँची है। इस मूर्ति की प्रतिष्ठा १० वीं शती में हुई है। इससे हमारी शिल्प कला की उत्कृष्टता का तो पता लगता ही है लेकिन साथ में यह भी विचारने को मिलता है कि जैन-धर्म प्राचीन काल में दक्षिणी भारतवर्ष में भी समधिक रूप से फैला हुआ था । ऐसी ही एक जैन मूर्ति ५५ फीट ऊँची ग्वालियर राज्य में भी है । यह भी अति प्राचीन है । देखो प्रा० भा० वर्ष का इतिहास भाग २० पृ० ३७३, ३७४ पर २२८ - यह सब को ज्ञात है कि यवन आक्रमणकारियों ने मन्दिरों पर कितने अत्याचार किये । इतिहास में इस विषय पर पर्याप्त प्रकाश अनेक इतिहासज्ञ डाल चुके हैं। २२६ - आयागपट्ट - मथुरा के कंकाली टीले से जो आयागपट्ट के दो खण्ड निकले हैं, इन्हें यूरोपीय शिल्प-विशारद भी देखकर चकित हो गये हैं । श्रयागपट्ट को कोरनी को देखकर यही मानना पड़ता है कि यह देवी - कृत्य है, मानव कृत्य नहीं । - २३० -- हमारे प्रन्थों में ऐसे कितने ही चित्रों के वर्णन आते हैं जो व्यक्तिविशेष के निर्देष, इंगित पर भ्रू-प्रक्षेप, एवं संकेत करते थे और बोलते, चलते थे। २३१ - गंधर्व - यह जाति आज भी विद्यमान है और संगीतविद्या ही इनका मुख्य व्यवसाय है । संगीत शास्त्र में प्रवीण होने २३६

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