Book Title: Jain Jagti
Author(s): Daulatsinh Lodha
Publisher: Shanti Gruh Dhamaniya

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Page 261
________________ जैन जगती PrecemREGNE परिशिष्ट मैना के शील के प्रभाव से ही श्रीपाल का कुष्ठ रोग शमन हुश्रा था। विशेष के लिये देखो श्रीपाल-रास या श्रीपाल चरित्र (गुजराती में)। २५५---राजर्षि उदयन-यह वीतभवनगर का राजा था। बड़ा प्रतापी था। इसने अनेक युद्ध किये और सबमें विजयी हुआ । अन्त में इसके मनमें वैराग्य उत्पन्न हो गया और अपने भागिनेय को राज्य देकर दीक्षा ग्रहण करली।। २५६-सम्राट श्रेणिक-यह मगध का सम्राट था और भगवान महावीर का परम भक्त था। इसके विषय में अनेक दन्तकथायें प्रसिद्ध हैं जिनका यहाँ वर्णन स्थानाभाव से असम्भव है। इसकी रानी चेल्लणा राष्ट्रपति चेटक की पुत्री थी और महासती थी। २५७-नंदिवर्धन-ये भगवान महावीर के भाई थे और भगवान के परमानुयायी थे। इनकी रानी जेष्ठा राष्ट्रपति चेटक की कन्या थी। नंदिवर्धन का राम-राज्य प्रसिद्ध है। २५८-राष्ट्रपति चेटक-यह बड़े नीति कुशल नरेश थे। समस्त आर्यावर्त के राज्यों में इनका भूरि सम्मान था। ये दृढ़ जैन धर्मी थे। इनके सात कन्यायें थीं और सात में से छह का भारत के सर्वश्रेष्ठ एवं महान राजाओं से विवाह हुआ था। एक बाल ब्रह्मचारिणी ही रही थी। इनके परिवार ने जैन धर्म का इतना विस्तार किया कि राष्ट्रपति चेटक को उप महावीर कहना चाहिये। इनकी कन्याभों का यह दृढ़ व्रत था कि जैन राजा से ही उनका विवाह होगा । और ऐसा ही हुआ।

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