Book Title: Jain Jagti
Author(s): Daulatsinh Lodha
Publisher: Shanti Gruh Dhamaniya

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Page 247
________________ * जैन जगती * परिशिष्ट इन्होंने लगभग १०० प्रथों की रचना की है। ये १७ वीं शती में हुए हैं । 'ज्ञान बिंदुप्रकरण, ज्ञानसार, नयप्रदीप, अध्यात्मसार द्रव्यानुयोग तर्कना, प्रतिमाशतक' आदि इनके अनुपम ग्रंथ हैं । १६३ - राजेन्द्रसूरि-ये महान् श्राचार्य अभी हो गये हैं । इनका जन्म सं० १८८३ में हुआ था । इन्होंने एक 'अभिधानराजेन्द्र-कोष' लिखा है जो सात भागों में छपकर तैयार हुआ है। दुनियां के समस्त सर्वश्रेष्ठ विद्याप्रेमियों ने इस ग्रन्थ की मुक्त कण्ठ से प्रसंशा की है । आपको कलिकालसर्वज्ञ माना जाता है । आपकी जीवनी छप चुकी है। १६४-६५ - जयसलमेर ( राजपुताना ), पाटण ( अहिलपुर) में अति प्राचीन जैन-भण्डार हैं । इनमें सैकड़ों हस्तलिखित प्रन्थ भी मौजूद हैं । कोई-कोई प्रन्थ ७-८ वीं शताब्दि के भी बताये जाते हैं। लेकिन दुःख है कि इनको आज हमारी अवहेलना और अधोगति के कारण, कृमि, दीमक खा रहें हैं। १६६ - चौदह पूर्व - उवाय ( उत्पाद), अग्गेणी (अप्राणीय) आदि १४ पूर्व कहे जाते हैं। ये पूर्व सबसे अधिक प्राचीनतम हैं। दुःख है कि ये चौदह ही पूर्व कभी के लुप्त हो चुके हैं । १६७ - द्वादशिकवत्सर दुष्काल- मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त के समय में १२ वर्ष का लम्बा एक भयंकर दुष्काल पड़ा, जिसमें कतिपय विद्वान ऐसा मानते हैं कि जैन-शास्त्रों का सर्वथा लोप हो गया। जितना अंश कंठस्थ रहा वह फिर लिखा गया । १६८ - वेद - जैन - साहित्यावलोकन से ऐसा प्रतीत होता है २२६

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