Book Title: Jain Jagti
Author(s): Daulatsinh Lodha
Publisher: Shanti Gruh Dhamaniya

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Page 245
________________ जैन जगती परिशिष्ट अर्थ निकलता है तथा 'धनंजयनाममाला' आपके प्रसिद्ध ग्रंथ हैं। १५२-वनस्वामी-इनकी स्मरण-शक्ति बड़ी प्रबल थी। आठ वर्ष की आयु तक इन्होंने श्रवणमात्र से ११ अंगों का सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लिया। पश्चात् प्राचार्य सिंहगिरि के पास इन्होंने दीक्षा व्रत ग्रहण किया। ये १० पूर्व के ज्ञाता और वैक्रियलब्धि-धर थे। इनका स्वर्ग-गमन महावीर सं० ५८४ में हुआ। १५३-अकलंक-ये प्रसिद्ध शास्त्रज्ञ थे। इन्होंने अनेक बौद्धों को शास्त्रार्थ में परास्त किया था और जैन-धर्म की अतिशय उन्नति की। १५४-वाग्मट-ये महाकवि थे। वाग्भटालंकारसटीक, नेमिनिर्माणकाव्य, काव्यानुशासनसटीक इनके रचे हुए ग्रंथ हैं । संस्कृत-साहित्य-जगत् में इनका सम्मान महाकवि कालिदास के समतुल है। १५५-धनपाल-महाकवि धनपाल महाकवि कालिदास के समकालीन हैं । 'तिलकमंजरी' जो कादम्बरी के जोड़ का ग्रन्थ है आपने लिखा है। १५६-श्रीमाल-ये प्रसिद्ध विद्वान हो गये हैं। आपने भी संस्कृत में अनेक ग्रंथ लिखे हैं। १५७ --मण्डन-ये शक्तिधर संस्कृत एवं प्राकृत के पंडित थे। इन्होंने अनेक पंडितों को शास्त्रार्थ में जीता था। इनकी स्त्री भी बड़ी विदुषी थी। ये मांडू (माण्डवगढ़ ) के रहने वाले थे। १५८-जयशेखरसूरि-ये आचार्य महेन्द्र प्रभसूरि के शष्य २२४

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