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® जैन जगती Necrotect
अतीत खएड.
पुज्यापराजिन' ३२, नंदि१३३, नंदिल' ३४,भद्रभुज ३५, श्रुतकेवली, सय थे चतुर्दश पूर्व के ज्ञाता धुरंधर निर्मली । श्री आर्यरक्षित ३६ सूरि के सुमनेश सेवक थे रहे; ये योग चारों आज उनका पूर्ण परिचय दे रहे ।।१४।। गणधर' 3७ हमारे ये सभी कैसे प्रखर विद्वान थे ? इनके विनिर्मित देख लो ये ग्रन्थ वे गुणवान थे.! थे ग्रंथ ऊमा स्वाति ने शत पंच संस्कृत में लिखे थे चैत्य तक भो सूत्र मुंह से बोलते उनके सखे ! ॥१५०।।
कविगज शेखर' ३९ चक्रपति से याद जब हमको नहीं ! निलेज कितने हाय ! हैं, बोलो पतन क्यों हो नहीं ! श्री कुन्दकुन्दाचार्य'४° का साहित्य कितना श्लिष्ट है! देवर्धि१४'ने सब शास्त्र विस्मृत फिर रचे नव इष्ट हैं ॥१५१।।
किस भाँति मूत्रोच्चार से श्री पादलिप्ताचार्य' ४२ नेकंचन किया रज-धूल का, माना जिन्हें नागार्य ४३ नेउस व्योमचारी साधु का तुम नाम भी नहिं जानते; सीमा कहाँ बोलो सखे ! अब हो पतन की मानते ? ॥१५२||
नवरत्न विक्रम भूपके पाण्डित्य में प्रख्यात हैं, साहित्य-रचना आज भी जिनको अनूठो ख्यात है। लेकिन दिवाकर' ४'सेन के ये सामने नहिं टिक सके, सम्राट विक्रम जैन फिर होये बिना नहिं रह सके ॥१५॥