Book Title: Jain Jagti
Author(s): Daulatsinh Lodha
Publisher: Shanti Gruh Dhamaniya

View full book text
Previous | Next

Page 222
________________ * जैन जगती #GO Bee * परिशिष्ट २७ - राजा मयूरध्वज - ये बड़े धर्मिष्ठ, दृढ़ती एवं दृढ़ वचनी थे। इनकी कथा सर्वत्र विश्रुत है । वचनबद्ध होकर ये अपने प्रिय पुत्र ताम्रध्वज की देह को भी चीर कर दो करने में नहीं हिचकाये थे । २८ - शालिभद्र - ये पूर्व भव में अहीर थे। इनकी माता बड़ी कठिनाई से उदरभरण करती थी । प्रायः माता -बेटे को निरन्न रह कर कितने ही दिन निकालने पड़ते थे । एक दिन इनकी माता ने बड़ा श्रम करके इनके लिये क्षीर बनाई । माता कार्यवशात् कहीं थोड़ी देर के लिये इधर उधर चली गई। पीछे से एक मुनिराज आहारार्थ इनके द्वार पर आये और इन्होंने वह समस्त वीर मुनिराज को बहरा दी । जब माता लौट कर आई और देखा कि क्षीर बूंद भर भी अवशिष्ट नहीं बची है; उसने सोचा लड़का क्षुधातुर था अतएव इतनी तोर खा सका । शालीभद्र को दृष्टिबैठ गई और पञ्चत्व को प्राप्त हुए । २६ - भगवान शान्तिनाथ - ये पूर्वभव में राजा मेघरथ थे । एक दिन ये राजसभा में सिंहासनस्थ थे कि अचानक उनके अंग में आकर एक संतप्त कपोत गिर पड़ा और शरण शोधने लगा । मेघरथ ने देखा कि एक बाज उसका पीछा किये हुए है । इतने में बाज भी राजा के संनिकट आ गया और बोला, 'राजन् ! मेरा भक्ष्य मुझे दीजिये। मुझे क्षुधा से पीड़ित रखकर आप कपोत की रक्षा करते हैं, एक पर स्नेह और एक से द्वेष - यह न्यायसंगत नहीं | अगर आप अपनी देह से आमिष काटकर इस कपोत के तोल के बराबर मुझे दें तो मैं इस कपोत को छोड़ २०१

Loading...

Page Navigation
1 ... 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276