Book Title: Jain Jagti
Author(s): Daulatsinh Lodha
Publisher: Shanti Gruh Dhamaniya

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Page 235
________________ जेन जगली. ने सहन किये होंगे । एक रथवान इसे और इसकी माता धारिणी को पकड़ कर जंगल की ओर भागा। माता ने विपिन में हो जिता खींचकर प्राण त्याग किया। गणिकाने इसे क्रय करी, श्रेष्ठ स्त्री ने इसे बंदी बनायी। लेकिन अंत में इसके सब उपसर्ग शमन हो गये। १०१-दमयन्ती-राजा नल की राणी दमयन्तो की भी कथा सर्वत्र विश्रुत है । इसने बड़ी चतुराई से अपने पति को पुन: शोधा था। १०२-ब्राह्मी-भगवान ऋषभदेव की पुत्री थी। यह आजन्म ब्रह्मचारिणी रही थी। अंत में इसने दीक्षा लेकर चारित्र पाला। १०३-सुज्येष्ठा-यह राष्ट्रपति चेटक की पुत्री थी। यह भी आजन्म अखण्ड ब्रह्मचारिणी रही थी। इसने भी चारित्र-व्रत ग्रहण किया था। १०४-सुन्दरी-यह बाहुबल की बहिन और भगवान ऋषभ देव की पुत्री थी। यह भी अखण्ड ब्रह्मचारिणी रही थी। १०५-पुष्पचूला-यह अनिकापुत्र प्राचार्य की परम सुयोग्या शिष्या थी और अद्वितीया सेवापरायणा थी। १०६-धारिणी-इस नाम की अनेक बराङ्गनायें हो गई हैं। यहाँ हमारा अर्थ चम्पानरेश दधिवाहन की शोलवती राणी धारिणो से है जो चन्दनवाला की माता थी। इसने अपने शील की रक्षा करने के लिये अनेक प्रयन किये थे अन्त में कोई उपाय

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