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जैन जगती Shree
* अतीत खण्ड
औदार्य-चेता भूप हैं; दुष्काल भी पड़ते नहीं, षष्ठांश कर से कर अधिक नहिं भूप लेते हैं कहीं। कर भूप जितना ले रहे, सब व्यय प्रजा हित कर रहे; अनिवार्य विद्या हो रही, गुरुकुल सभी थल चल रहे ।। ३१४ ।। देखो यहाँ होते नहीं यों चूंस के व्यापार हैं; ग्रामीण जन पर भाज-से होते न अत्याचार हैं। नृप आप जाकर ग्राम में हैं पूछते, 'क्या हाल हैं' ? कैसा प्रजापति वह भला काटें न दुख तत्काल है ॥ ३१५ ॥ यों भ्रूण हत्या, अपहरण देखो कहीं होते नहीं; दुःशीलता की बात क्या ! रतिचार तिल छूते नहीं। हा ! वृद्ध भारत ! पुन तेरे जन्मते थे गुण भरे; हा ! हंत! अब तो प्रौढ़ भी हैं दीखते अवगुण भरे !! ॥ ३१६ ॥ ___ तीर्थयात्राअब अन्त में वर्णन तुम्हें हम तीर्थ यात्रा का कहें; फिर से सभी वातावरण संक्षेप में तुमको कहें। धन-ऐश-वैभव-भाव का सब कुछ पता मिल जायगा; कुछ उक्त में से होगया विस्मृत, नया हो जायगा ।। ३१७ ॥ है तीर्थयात्रा चीज क्या ? श्री संघ फिर क्या हैं अहो ! जातीय सम्मेलन अहो ! ये घट गये कब से कहो ? क्यों श्रमण, श्रावक उस तरह से आज मिलते हैं नहीं ? क्यों देश, जाति, सुधर्म पर सुविचार अब होते नहीं १ ॥३१८ ॥
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