Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 04 05
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 28
________________ २०४ aummmmmmmm जैनहितेषीTHERETRETIREMETHEREINDI (दौलतरामके दानों पुत्रोंका प्रवेश ।) १ नाते--वही जो मैंने जोड़ा है, 'बुड्डा १ पुत्र-जायदाद आधी मेरी है। मरा है।। २ पुत्र-एक पैसा भी तुम्हारा नहीं है। दौलत०--इसी बीचमें गीत भी बनगया। लालाजी वसीयतनामेमें सब मेरे नाम लिख गये हैं। बलिहारी ! दौलत-लिख गया हूँ ! कहाँ ? मुझे तो ( सबका गाना) नहीं याद ? बुड्ढा मरा है बुड्ढा मरा है १ पुत्र-वसीयतनामा जाली है। मैं साबित बुड्ढा मरा है मरा है मरा है। करूँगा। दौलत०-बस, अब तो सहा नहीं जाता। २ पुत्र-कभी नहीं। ( सबका गाना) १ पुत्र-कभी नहीं। बुड्डा मरा है मरा है मरा है.. २ पुत्र-मैं मिस्टर दासको अपनी ओरसे (दौलतराम लकड़ी हाथमें लिये आगे बढ़कर खड़ा करूँगा। गाता है-) १ पुत्र-मैं बैरिस्टर जैक्सनसे पैरवी करा- बुड्ढा मरा नहिं बुड्ढा मरा नहिं ऊँगा। देखो अजी अभी बुड्ढा मरा नहिं । २ पुत्र-मैं दस हजार रुपये खर्च करूँगा। १ पुत्र-ऐं ऐं ! यह कौन है ? १ पुत्र-मैं पन्द्रह हज़ार रुपये उठाऊँगा । २ पुत्र-हाँ, यह कौन है ? २ पुत्र~-तू बेईमान है ! दौलत०--(लड़कोंसे ) तुम चाहे जितना १ पुत्र-तू धोपेबाज है ! आश्चर्य प्रकट कसे, लेकिन मुझको विश्वास है २ पुत्र-तू मूसा है ! कि बुड्डा अभी नहीं मरा और वह सशरीर १ पुत्र-तूं मच्छड़ है ! तुम्हारे आगे खड़ा है। २ पुत्र-मेरे घरसे निकलजा ! १ पुत्र-कैसे! १ पुत्र-तेरा घर !-तेरे बापका घर है। २ पुत्र-ठीक तो है, कैसे ! २ पुत्र--निकलो (दोनों भाग जाते हैं ) १ पुत्र--चुपरह नातेदार लोग--(दौलतसे ) तुम कौन १ नातेदार-अजी झगडा क्यों करते हो जी, हमारे गानेमें खरमंडल डाल दिया ! हो ! आज खुशी मनाओ। ऐसा आनन्दका दिन, निकलो । तुम कौन हो ? तुम्हारे बाप मरे हैं ! दौलत०--मैं इन दोनों लड़कोंका बाप हूँ। . ३ नातेदार--हाँ, पेट भरकर खाओ। नातेदार०--बाप! हो ही नहीं सकता। ४ नाते-जी भरकर आनन्द मनाओ। हम विश्वास ही नहीं करते । तुम साबित करो ५ नाते०--नाचो ! कि बाप हो। २ नाते०--गाओ! __ दौलत०--सब कुछ साबित ही करना १ नाते०-मैंने एक गीत जोड़ा है ! होगा! भाइयो! सुनो-इस बातको तो कोई साला २ नाते०–हाँ गाओ, वही गीत- नहीं साबित कर सकता कि वह बाप है । उस ३ नाते-कौन ? बात पर तो विश्वास ही कर लिया जाता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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