Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 04 05
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 30
________________ २०६ १ नाते ० -- अरे चुप, सबेरे फेर छनेगी भंग सबेरे ५ नाते ० -- मेरी क्या यहीं रह जायगी । सुनो- चौथे पहरे जो कोई छाने बच्चा आपी आप । बे-जोरू बे-ससुरेके हो छै बच्चेका बाप ॥ दौलत - वाह बेटा, तुम्हारी खूब रही ! १ नाते - अररररर सबेरे फेर छनेगी भंगगौहर -- मुझे कोई बूटी पिलाके लुभाय गया कोई मुझे । ( सबका नाचना । साथ ही साथ दौलतका भी नाचना और गिरना । ) नातेदार - लो बी गोहरजान, एक ढेर हुआ तुम्हारे गानेसे । दौलत ० -- ( पड़े ही पड़े नशेमें) अबे चुप- मैं सेठ - दौलतराम हूँ । या नहीं ? - फिर मैं कौन हूँ? कोने भाई दौलत, आगये ! ( बिहारी, दारोगा के वेषमें रामचन्द्र और एक हवलदार दो सिपाहियोंके वैषमें नन्दू, मोहन और सुन्दरका प्रवेश । ) बिहारी -- हाँ आगया दादानातेदार -- अरे पुलिस आगई । भागो भाग ( भाग जाते हैं ! ) बिहारी - ( दारोगा से ) यही दौलतराम आया है - असामियोंको धोका बनकर देनेके लिए | दारोगा - क्या तुम कहते हो कि मैं सेठ दौलतराम हूँ ? दौलत ० -- ( हाथ जोड़कर ) जी जमादार साहब । ( सिपाहियों का पकड़लेना ! ) दारोगा - पकड़ो इसको । Jain Education International - दौलत • - जी मैं-दारोगा - दौलतराम सेठ है ! दौलत ० -- ( काँपता हुआ ) जी, कभी किसी जन्म में नहीं ! दारागो- -तब उसके जैसा रूप रखकर क्यों आया ? 0 सच बोलो। दौलत ० --जीदारोगा – झूठ, दौलत ० - दारोगा साहब, मेरे कहने के पहले ही आपने मेरी बातको झूठा ठहरा लिया ! दारोगा -- वह मैं जानता हूँ । दौलत ० - दारोगा साहब, यह तो मैं जानता था कि पुलिस के आदमी सर्वशक्तिमान् होते हैं, लेकिन यह न जानता था कि सर्वज्ञ भी होते हैं। दारोगा - - सच बोलो । ( रुलका हुला मारना ) दौलत ० - जी वही कहनेवाला था, लेकिन इस मारसे तो सच बात भूली जाती है। अब मैं क्या कहूँ तो आप खुश हों ? दारोगा -- कि मैं दौलत सेठ नहीं हूँ । ( रूल दिखाता है ) दौलत ० - कभी नहीं | मारो न बाबा ! दारोगा ० - फिर तुम कौन है ? दौलत ०- -संपत सेठदारोगा - संपत सेठ कौन ? दौलत ० -- दौलत सेठका छोटा भाई । दारोगा -- तो फिर दौलत सठेके जैसा चेहरा बनाकर क्यों आया ? दौलत ० -- जी - ( सोचता है ) दारोगा -- सच बोलो । ( रूलका हूला मारता है ) उसका ऐसा चेहरा बनाकर - दौलत :० - हम दोनों जोड़िया भाई थे । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96