Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 04 05
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 81
________________ dation Janmidarsha MILAIMIMLAI LALIA जनरल आर्मस्ट्राँग। intinuiffiffill २५७ m कि जिस समय मनुष्यके मनमें क्रान्तिकारक थे । उनको न तो अपने सुखोंका ख्याल था विचार धूम मचाते हैं उस समय उसे एकाएक और न स्वार्थों का; केवल नीग्रोलोगोंका उद्धार, अपना अभीष्ट काम सूझ जाता है । हमारे यह एक ही विचार-एक ही ध्येय-एक ही कामना चरितनायकको भी ऐसा ही हुआ । यह सच है उनके मनमें जागरित रहती थी। कि ४० लाख नीग्रो कानूनके अनुसार दासत्वसे दूसरोंको दासत्वके फंदसे छुड़ानेवाला स्वतः मुक्त होगये, परन्तु अब उन्हें क्या करना चाहिए? ही अपने बलवान् विचारोंका दास बनगया। उनके भरण पोषण और रहनेके लिए क्या क्या करना चाहिए ? क्या करनेसे एक पतित व्यवस्था करना चाहिए? इस समय राष्ट्र के साम्हने जातिका उद्धार होगा-वे निरंतर इन्हीं विचारोंयही प्रश्न खड़ा था । पहलेके मालिकोंने अपने में रहा करते थे और जो यक्तियाँ उन्हें सझ पड़दासोंको सरकारके जिम्मेंकरके रसीद लेली। ती थीं उन्हींके अनुसार काम करने में लग जाते कुछ समय पहले जो दास सनाथ थे वे अब थे। उन कामोंको पूर्ण करने के लिए वे पत्र लिखते अनाथ हो गये-उन्हें कोई सहारा देनेवाला न थे, मित्रोंसे प्रार्थनायें करते थे, व्याख्यान देते थे, रहा । स्वाधीनताप्राप्त नीग्रो लोगोंमेंसे अधिकांश और समाचार पत्रों में लेख लिखते थे। इस तरह इस दक्षिणप्रान्तोंही में रहते थे और वहाँके निवासी दीनवत्सल महापरुषका सारा समय इसी परोपउन्हें किसी तरहकी सहायता नहीं देना कार चिन्तामें बीतता था। इस तरहके प्रयत्नोंसे चाहते थे । अंतको उत्तरप्रान्तबालोंका इस नीग्रो लोगोंको खूब सहायता मिलने लगी; ओर ध्यान गया और उन्होंने इनके लिए योग्य किसीने उनको घरपर नौकर रख लिया, किसीने सहायता देना शुरू कर दिया । सरकारने भी खेतोंमें तनरव्वाहसे काम करनेके लिए नियुक्त उनके लिए अन्न पानीका कुछ सुभीताकर दिया। किया और किसी किसीने उनको अपने कारखा. इसके सिवा एक 'नीग्रो-हितेच्छु-मंडल' भी नोंमें रखकर उनको काम सिखाना शुरू कर स्थापित किया गया। उसके सभासद उनकी हर दिया। इतना हो चुकने पर नीग्रो बालक बालि. तरहसे मदद करनेके लिए तैयार हो गये। काओंको पढाने लिखानेकी व्यवस्था करनेका कप्तान आर्मस्ट्राँगने यह सब देखकर और यह विचार हमारे चरितनायकके मनमें उत्पन्न हुआ समझकर कि हमारे सोचे हुए सभी काम चालू और उसके लिए उन्होंने प्रयत्न भी शुरू कर होगये हैं-बड़ी प्रसन्नता प्रकट की। उन्होंने उन दिया। पढ़ लिखकर सुशिक्षित होना ही नीग्रोलोसब कामोंमें तन मन धनसे योग देना प्रारंभ गोंका सच्चा दास्यविमोचन या गुलामीसे छुटकर दिया । और इस तरह सन् १८६६ से कारा पाना था । परन्तु अभीतक इस बातकी १८९३ तक उन्होंने अपने आयुष्यकी २७ वर्षे ओर किसीका ध्यान नहीं गया था । आर्मस्ट्राँएकनिष्ठासे नीग्रोलोगोंकी सेवामें व्यतीत की। गने नीग्रोबालक बलिकाओंकी शिक्षाके लिए दूसरे और भी कई आदमी व्यक्तिशः या अनेक लोगोंकी सहानुभूति सम्पादन की और संस्थायें स्थापित करके इस कार्यमें लग गये थे, उनमेंसे बहुतोंने उनको द्रव्यकी सहायता देनेका तो भी आर्मस्ट्रांगका भाव और उत्साह आलौकिक वचन भी दिया । पाठशालाके लिए स्थान और था-उसमें जरा भी शिथिलता न आई । वे भूख पढ़ानके लिए योग्य विषयोंका चुनना, ये दो बाप्यास भूलकर एक पतितजातिके उद्धारमें लगे तें ही महत्त्वकी थीं । इन दोनों बातों पर खूब ११ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96