Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 04 05
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 83
________________ जनरल आर्मस्ट्राँग । गया । इस शुभ अवसर पर आर्मस्ट्रॉंग के गुरु भी उपस्थित थे । पहले पहल विद्यालय बहुत छोटे स्कीम पर खोला गया था - पहले दिन विद्यार्थियोंकी संख्या केवल १५ थी । विद्यार्थियों को सबेरे हाथके काम करनेकी और दो पहरको पढ़ने लिखने की शिक्षा दी जाती थी। न तो विद्यार्थियोंसे फीस ली जाती थी और न अध्यापकोंको बेतन दिया जाता था । इस तरह पाठशा - लाका काम चलने लगा । धीरे धीरे विद्या र्थियोंकी संख्या जैसे जैसे बढ़ती गई, सहायता और एकत्रित हुए द्रव्यसे अध्यापक भी बढ़ाये जाने लगे । जनरल स्ट्रांगके कुछ मित्रोंने उनसे वेतन लेनेके अनुरोध किया था । इस विषय में उन्होंने जगह लिखा है: मित्रोंकी वैसे वैसे आर्म - लिए एक “ मेरे मित्र मुझे वेतन लेनेके लिए कहते हैं; परन्तु निरपेक्ष काम करना ही अच्छा और श्रेयस्कर होता है। युद्धके समय शत्रुसैन्यके अधिकारी बिना तनख्वाह लिए लड़ते थे; तब क्या मैं विद्यादान के कामको बिना बेतन लिए नहीं कर सकूँगा ? यह मेरा व्रत है, इस व्रतको मैं बिलकुल निरपेक्षतासे करता रहूँगा " । Jain Education International हेम्पटन विद्यालय के लिए जब जब नये मकान बनवानेका अवसर आता था या जब जब किसी दूसरे कामके लिए मजदूर लगाये जाते थे तब तब जनरल आर्मस्ट्रॉंग आधे यूरोपियन और आधे नीग्रो लोगोंको कामपर लगाते थे और जातिविषयक भेदभावको भूलकर सबको समान वेतन देते थे । जनरल आर्मस्ट्राँगने सन् १८६९ में एमा वाँकर नामक एक महिलासे पाणिग्रहण किया । इस महिला के विचार बहुत ही उदार थे। उसे निष्काम कर्मोंसे बहुत प्रेम था । अब एककी जगह दो कार्यकर्त्ता हो गये । श्रीमती एमा और आर्मस्ट्रॉंग दोनोंके परिश्रम से हेम्पटन संस्थाका काम बहुत अच्छी तरह से चलने लगा | २५१ सत्कार्योंमें विरोध हुआ ही करता है, स्वार्थ का मोह अपना जाल फैलाता ही है, माया मोहकरूप धारण करके साम्हने आतीही है और इसी तरह न जाने क्या क्या विघ्न आया करते हैं। ऐसा ही यहाँ हुआ । अनरल. . आर्मस्ट्राँग उनके कई मित्रोंने अमेरिका - काँग्रेस के सभासद होने और उसके द्वारा कीर्ति सम्पादन करने की सलाह दी थी; परन्तु उन्होंने उसे अस्वीकार की और गरीब शिक्षक रहने और केवल शिक्षकका ही काम करने की इच्छा प्रगट की। कई लोग उनके इस कामको पसंद नहीं करते थे; वे पूर्व की भाँति सदैव काले - गोरों में भेदभाव रखना चाहते थे । इस कारण दक्षिणके वर्जिनिया स्टेटकी ओरसे विद्यालयके रजिस्टर्ड कराने में अड़चन उपस्थित की गई । सभासदोंके मनमें पुराना क्रोध तो था ही, वे अनेक विघ्न खड़े करने लगे । वे गोरे बालकोंको पाठशाला में लेनेसे रोकने लगे । जनरल आर्मस्ट्रॉंग कहते थे कि यद्यपि पाठशाला काले लड़कों के लिए है; परन्तु गोरे लड़कोंके आने पर मैं उनके साथ सबको समान शिक्षा देनेका पक्षपाती हूँ। ऐसा होना अर्थात् भेदभावको मिटाना काले-गोरे दोनों को लाभकारी है । अंत में कर्मवीर आर्मस्ट्रॉंगको सफलता प्राप्त हुई और ४ जून सन् १९७० को पाठशाला रजिस्टर्ड होगई । इस तरह पाठ - शालाका काम फिर निर्विघ्न रीति से चलने लगा । सन् १८७० से १८९० ई० तक २० वर्ष पर्यंत जनरल आर्मस्ट्राँगने हेम्पटन - संस्थाकी उन्नति के लिए अविश्रान्त परिश्रम किया । 'मनुष्य जातिका उपकार करना ही परम पुण्यकार्य है और इसीसे ईश्वरकी प्रसन्नता प्राप्त होती है' । इस भावनासे उन्होंने लगातार काम किया । नीग्रो लोगोंको सब तरहसे उत्तेजन For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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