Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 04 05
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 46
________________ २२२ क जैनहितैषी a कषायमें शक्ति होती है, परंतु शाक्त कुमार्गकी की ओर लगी रहती है। उससे दुःख होता है। जीवन और मृत्यु । मनमें सदैव इच्छायें उत्पन्न हुआ करती हैं। 50 0 याद वे शुभरूप होती हैं तो सुखकर होती हैं MT और यदि अशुभरूप होती हैं तो दुःखकर वास्तवमें जीवन और मृत्यु भिन्न भिन्न नहीं होती हैं । इच्छायें एक प्रकारकी जलती हुई हैं-एक ही व्यापारके भिन्न भिन्न नाम मात्र हैं। तलवारें हैं जो स्वर्गके द्वार पर रक्षकका काम कर , एक रुपयेके ऊपर दोनों ओर जैसे भिन्न भिन्न रंही हैं । मूर्योको वे जलाकर भस्म कर डालती हैं और बुद्धिमानोंको स्वर्गमें दाखिल कर छाएँ रहती हैं, उसी तरह जीवन और मृत्यु ये लेती हैं। दोनों व्यापारकी जुदी जुदी अवस्थायें हैं। ___ वह मनुष्य मूर्ख हैं जो अपनी अज्ञानताकी जगत्में यदि कोई पाप है तो वह दुर्बलताके सीमाको नहीं जानता, जो केवल अपने विचा- सिवाय और दूसरा नहीं है। इस लिए सब रोंका गुलाम है और जो सदा अपनी इच्छा- प्रकारकी दुर्बलताओंको त्यागो । दुर्बलता ही ओंके अनुसार काम करता है। इसके विपरीत मृत्यु है, दुर्बलता ही पाप है। . वह मनुष्य बुद्धिमान है, जो अपनी अज्ञानताको जानता है, अपने विचारोंकी निरर्थकताको । जीवनका अर्थ उन्नति और उन्नतिका अर्थ - समझता है और जो अपने कषायोंको शमन हृदय-विस्तार है । हृदय-विस्तार कहो या प्रेमकरता है। भावना कहो, दोनों एक ही वस्तु हैं। मतलब यह ___ मूर्ख अज्ञानताके नीचेसे नीचे कपमें गिरता कि प्रेम ही जीवन है और प्रेम ही जीवन-नियामक जाता है परंतु बुद्धिमान ज्ञानके ऊँचे ऊँचे क्षेत्रमें वस्तु है । स्वार्थान्धताको मत्यु समझना चाहिए। प्रवेश करता जाता है । मूर्ख इच्छा करता है, जहाँ स्वार्थवासना होती है-वहाँ जीवन टिक कष्ट उठाता है और मर जाता है; परंतु बुद्धिमान ही नहीं सकता। उच्च अभिलाषा रखता है, प्रसन्न होता है और जीवनका नाम विस्तार है और मृत्युका नाम जीवित रहता है। संकोच; अथवा प्रेम ही जीवन है और द्वेष ही __ आत्मोन्नतिका अभिलाषी वीर योद्धा मान- , सिक उन्नति करता हुआ ज्ञानप्राप्तिमें लीन मृत्यु । जिस दिनसे हम संकुचित बनने लगेंगे होकर शांतिके उच्चतम शिखरकी ओर दृष्टि और अन्यान्य मनुष्योंका तिरस्कार करने लगेंगे लगाये हुए, ऊँचे ऊँचे चढता जाता है और एक उसी दिनसे हमारी मृत्युका प्रारंभ होगा। जब तक दिन उस अभीष्ट स्थानपर पहुँचकर परमसख- हमारा हृदय उदार और विशाल रहेगा तब तक परमानंदका भोग करता है।* मृत्युकी शक्ति नहीं है कि वह हमारा स्पर्श कर सके। * जेम्स एलन की Passion to Peace नामक स्वामी विवेकानन्द । पुस्तकके Passion शीर्षक निबंधका भावानुवाद । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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