Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 04 05
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 69
________________ HOMMITICALMOTIAURATIOD विविध प्रसङ्ग। Ra maitrinturniturthiRITERESS २४५ तो भावी प्रजाको चिरकाल तक पछताना पड़ेगा। हैं, हमारे ही घरोंकी चोरियाँ करते हैं और उलहनेसे वे कभी नहीं बचेंगे । मैं आशा करता हमारे ही पशुओंको मारकर खाजाते हैं । अतः हूँ कि यहाँ बैठे हुए समस्त विद्यार्थी प्रतिज्ञा करेंगे यदि उन्हें शिक्षा दी जायगी, तो वे अपनी कि निरुपाय दशाके सिवा और कभी भी हम आजीविका न्यायमार्गसे करने लगेंगे। इससे उनका अपने घर पर अँगरेजी न बोलेंगे। विद्यार्थियोंके कल्याण होगा और हमारे घरोंमें चोरी आदि माता पिता भी समयकी खरतर धारामें बह उपद्रव न होंगे । हमारे तीर्थक्षेत्रोंके निकट जानेसे सावधान रहें । अँगरेजी भाषा हमे पढ़ना रहनेवाले जो भील आदि अनार्य्य लोग हैं, उनके अवश्य चाहिए, किन्तु मातृभाषाको भुलाकर लड़कोंके लिए यदि हम पाठशालायें खोल देंगे, नहीं । हमारे जनसमाजका सुधार हमारी तो वे लड़के बड़े होनेपर नौकरी चाकरी या मातृभाषा द्वारा ही होगा । मातृभाषाकी उन्नति और कोई व्यापार करके अपना पेट भरने लगेंगे।" करना विद्यार्थियों और उनके माता पिताओंका जैनोंकी जनसंख्या कम होती जाती है, इस भी कर्तव्य है । मैं प्रसन्न हूँ कि यह पुस्तकालय विषयमें सेठजीने दो कारण बतलाये हैं एक मेरे हाथसे खोला जा रहा है । पर, यदि यह जैनधर्मानुयायी अन्य धर्म स्वीकार करने लगे हैं अपनी भाषाकी पुष्टि न करके उसे क्षीण करेगा और दूसरा प्लेग । पहले कारणको ठीक बतलाते तो मुझे अत्यन्त दुःख होगा।" हुए कहा है कि " सतारा, पूना, अहमदनगरके ११ प्रान्तिक सभाके सभापतिका कासार लोग धर्मोपदेशके अभावसे अपनेको व्याख्यान । ___हिन्दू कहलवाते हैं और निजाम स्टेटके जैनोंका दिगम्बर-जैन-प्रान्तिक सभा बम्बईके इस भी यही हाल है ।" यह हम मानते हैं कि कुछ अधिवेशनमें सभापतिका आसन आलन्दनिवासी लोगोंने पिछले १० वर्षों में जैनधर्म छोड़ दिया शेठ माणिकचन्द मोतीचन्द शहाने स्वीकार होगा; परन्तु वह इतना बड़ा कारण नहीं है । किया था । मालूम नहीं स्वयं आपको जैन- इस विषय पर विशेष विचार इसी अंकमें प्रकासमाजसे कितना परिचय है और आपकी शित हुए श्रीयुत बाबू निहालकरणजी सेठीके योग्यता कैसी है; परन्तु आपने जो व्याख्यान लेखमें किया गया है । उसमें यह भी बतलाया पढ़ा, वह अच्छा लिखा गया है । यद्यपि गया है कि प्लेग भी जनसंख्याकी हानिका उसमें विशेष जोश या उत्तेजना नहीं है, तो भी प्रधान कारण नहीं है। जैनसमाजका उसमें खासा परिचय दिया गया १२ रोटी-बेटी व्यवहार । है। कहीं कहीं नये विचारों और सुधारोंकी प्रान्तिक सभाके स्वागतकारिणी कमेटीके ' ढंगके साथ ' हिमायत की गई है । अछूत सभापति सेठ नवलचन्द-हीराचन्दजीने अपने और नीच जातियोंको शिक्षित बनानेके लिए कहा व्याख्यानमें कहा कि “ प्राचीन कालमें जब गया है-" नीच मानी हुई जातियोंके लड़कोंको रेल, तार, डाँक, आदिके सुभीते न थे, तब ज्ञान दिया जायगा तो उसमें स्वार्थ और परमार्थ लोग रोजगार-धंधेका तथा ब्याह शादियोंका दोनों सफेंगे । इस समय वे अशिक्षित हैं, इस सम्बन्ध अपने समीपके ग्रामोंसे ही रखना लिए हिंसा, चोरी, डकैती आदि नीच कर्म चाहते थे और इस कारण एक भागके करके पेट भरते हैं-हमारे ही घरोंपर डाँके डालते रीति रिवाज, वेष-भूषा आदि दूसरे भार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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