Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 04 05
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 65
________________ MAD CatfilmiBITAMITHALI विविध प्रसङ्ग । AmirmirmirmiTERE २४१ अभी कुछ समय पहले जैनगजटके किसी लेख- है ? एक ब्रह्मचारिणी बालविधवाकी इज्जत क्या कने सुनाई भी थीं; परन्तु जो मर्मज्ञ हैं वे इसे बाजारू वेश्याके भी बराबर नहीं हो सकती है ? माननेसे कभी इंकार नहीं कर सकते। उक्त हमें आशा है कि विद्वान जन इस विषयमें निरविद्वानोंने ब्रह्मचर्यकी जुदा जुदा सीढ़ियाँ बत- पेक्ष होकर विचार करनेका कष्ट उठायेंगे । लाई हैं । जो वेश्यासे सम्बन्ध करता है वह ७ जनहितैषीका निषेध । पापी है इसमें कोई सन्देह नहीं; परन्तु यहाँ जनहितैषीके किसी एक लेखका निषेध तो केवल पापका विचार नहीं है--पापके दर्जाका किया जा सकता है; परन्तु यह समझमें नहीं आया विचार है । यह देखना है कि कौन पाप छोटा किपं० कश्तरचन्दजीने जैनहितैषीका निषेध क्या है और कौन बड़ा है। जैनधर्मकी दृष्टिसे तो समझकर कर डाला ! क्या आपकी उपदेश-मुवेश्यागमन ही क्यों स्वस्त्रीगमन भी पाप है। खरा बद्धिमें अभी तक यह बात नहीं आई कि परन्तु सबसे बड़ा पाप है, पराई स्त्रियोंसे पत्रसम्पादक अपने पत्रके प्रत्येक लेखका उत्तरसम्बन्ध, उससे छोटा है वेश्याओंसे सम्बन्ध, दाता नहीं होता है ? वह किसी एक विषयके और उससे छोटा है अपनी स्त्रीसे सम्बन्ध । निर्णयके लिए अपने अनुकूल और प्रतिकूल अतः परस्त्रीगमनकी अपेक्षा वेश्यागमन और दोनों प्रकारके विचारोंका प्रकाश करता है। वेश्यागमनकी अपेक्षा स्वदारसन्तोष अच्छा है; यह आवश्यक नहीं कि प्रत्येक लेख उसीके वि. पर स्वतः तीनों ही अच्छे नहीं हैं-तीनों ही- चारोंके अनुकल हो । उसका सबसे बड़ा उद्देश्य पाप हैं।जो उत्तम पात्र है, उसे शुद्ध ब्रह्मचर्यका, · सत्य ' के निर्णयका रहता है, आप लोगोंजो मध्यम है उसे स्वदारसंतोषका और जो के समान लकीरके फकीर बने रहनेका नहीं । निकृष्ट है उसे परदारनिवृत्तिका उपदेश दिया यदि हितैषीमें एक लेख पुनर्विवाहके अनुकल जाता है । ठीक इसी दृष्टिसे पुनर्विवाहका प्रकाशित हुआ है तो आप चिन्ता क्यों करते हैं विचार होना चाहिए । विधवाविवाह या विधुर- प्रतिकूल लेख भी प्रकाशित होंगे । अभी तो विवाहको कोई पुण्य नहीं बतलाता है । अवश्य इस विषयका प्रारंभ ही हुआ है। यदि आप प्रही यह पाप है; परन्तु उस पापकी अपेक्षा तिकूल लिख सकते हैं, तो कुछ लिखअच्छा है-ऊँचे दर्जेका है जिसके कि कारण प्रति नेकी कोशिश कीजिए । पर यहाँ उन दिन सैकड़ों भ्रूणहत्यायें और गर्भपात किये पुरानी जंग खाई हुई युक्तियोंसे काम न जाते हैं और इसी कारण जो अपनी इन्द्रियोंके चलेगा जिन्हें सुनकर आपके भोले भाले श्रोता गुलाम हैं उनके लिए यह आचरणीय है । जिन तालियाँ पीटने लगते हैं । क्योंकि जनहितैषीके पण्डित और उपदेशक महाशयोंने इसे जैनधर्मसे पाठक इस बीसवीं शताब्दिके हैं और आपकी अत्यन्त विरुद्ध और दुष्कृत्य बतलाया है, वे युक्तियाँ दशवीं शताब्दिके कामकी हैं। आपको क्या कृपा करके बतलावेंगे कि वेश्यागामी यह भी स्मरण रखना चाहिए कि आपके उपगृहस्थका ब्रह्मचर्य जैनधर्मसे अत्यन्त अविरुद्ध देशोंसे और प्रतिज्ञाओंके करानेसे हितैषीके और सत्कृत्य कैसे हो सकता है ? क्या उनकी ग्राहक कम नहीं हो सकते; क्योंकि जिन समझमें किसी विधवाके साथ पुनर्विवाह करने- लोगोंपर आपका प्रभाव पड़ता है-जो लोग आधाला गृहस्थ उक्त वेश्यागामी गृहस्थसे भी बुरा पके संकीर्ण विचारोंपर श्रद्धा रखते हैं, उन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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