Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 04 05
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 47
________________ गाँधीका सत्याग्रह - आश्रम । थोडे दिन पहले मद्रास में श्रीयुत मोहनचन्द्र कर्मचन्द्र गाँधीका जो महत्त्वपूर्ण भाषण हुआ था, उसका सारांश यह है आज मैं अपने उस आन्तरिक भावको बतलाना चाहता हूँ जिसे मैंने अपने हृदय में बहुत दिनसे स्थान दे रक्खा है और जो मेरे लिए सब कुछ है । और वह है क्या ? वह है अपने उस आश्रम के विषय पर विचार करना जिसे मैं भारतमें कहीं न कहीं स्थापित करना चाहता था, और जिसे वे बहुतसे विद्यार्थी जो मुझे पारसाल मिले थे जानते भी होंगे। सर्व्वसाधारणके कामोंमें योग देकर जो कुछ भी मैंने अनुभव किया है वह बस केवल यही है कि हमारे लिए सबसे बड़ी आवश्यकता है चरि-गठनकी, हमारे लिए ही नहीं बल्कि हर जाति के लिए, यदि वह अपना अस्तित्व संसारमें कायम रखना चाहती है । सत्यव्रत । और इसी चरित्रगठनके लिए इस आश्रम में कुछ नियमों का पालन कराया जायगा और उन सबमें सबसे प्रथम है सत्यकी प्रतिज्ञा । यह सत्य वह सत्य नहीं है जिसे हम आम तौर से आज दिन व्यवहारमें ला रहे हैं, किन्तु इस सत्य द्वारा हमें अपने जीवनको सत्यमय बनाना होगा। दृष्टान्तके लिए बहुत दूर न जाइए। प्रह्लादको ही लीजिए और देखिए कि उसने केवल सत्यही के कारण अपने पिता पर विजय पाई थी । इस आश्रमका यह नियम होगा कि जिस बात - को हम ' नहीं करना चाहते, उसके विषय हम स्पष्ट रीतिसे नहीं कर देंगे, नतीजा कुछ भी क्यों न हो । चाहे Jain Education International अहिंसा -व्रत । दूसरा नियम है अहिंसा की प्रतिज्ञा । यों तो अहिंसाका अर्थ हिंसा न करना ही है किन्तु यदि आप इसके तह तक जायँ तो आपको पता चलेगा कि अहिंसाका अर्थ है किसीको किसी प्रकारका भी दुख न देना, यहाँ तक कि उस व्यक्तिके विषयमें भी, जो अपनेको तुम्हारा शत्रु मानता हो, कोई भी बुरा विचार हृदयमें न लाया जाय । जिसने अहिंसा के मर्मको समझ लिया है उसके हृदयमें शत्रुभावका स्थान ही नहीं, और इस सिद्वान्तके अनुसार मान मर्यादा तथा देशकी रक्षा तकके लिए न हत्याओंके लिए स्थान है और न उत्पातहीके लिए । अहिंसाका यह सिद्धान्त हमसे कहता है कि हम उन आदमियोंके हाथों में जो अत्याचार कर रहे हों, आत्म-समर्पण करके उनके मानकी रक्षा करें जिनका भार हमारे ऊपर है, और इस काममें उस बलसे शारीरिक और मानसिक बलकी अधिक आवश्यकता है जिसकी आवश्यकता घूँसेका उत्तर घूँसेमें देनेमें होता है । मानलो, तुममें शारीरिक बल है, तुमने उसका प्रयोग किया, तो जानते हो कि आगे क्या होगा ? क्रोध और घृणासे पागल विपक्षी तुम्हारे इस प्रकार के मुकाबलेसे और भी पागल हो जायगा, और जब वह तुम्हें समाप्त कर चुकेगा तो उसकी उद्दण्डता तुम्हारी धरोहर पर झपटेगी । परन्तु, यदि तुम उसका इस प्रकारका मुकाबला न करो, केवल अपने स्थान पर घूँसा खाने के लिए अपनी धरोहर और अपने विपक्षीके बीचमें जमे रहो, तो मैं तुमसे कहता हूँ कि विपक्षीकी For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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