Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 04 05
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 50
________________ ROSESES69202626921 वायुयानों का इतिहास | (ले० पं० शिवसहाय चतुर्वेदी । ) DROGEOCACOPOBOACOU शमें घूमने की इच्छा चली आ रही है । प्रत्येक जाति के इतिहास में इसके कई स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं । हिन्दुओंके महाकाव्य रामायण में लिखा है कि रामचन्द्रजी पुष्पक विमानके द्वारा आकाशमार्गसे स्वदेशको लौटे थे । ग्रीक पुरा - णोंमें लिखा है - फिक्माश और हेल अपनी सौतेलीमा इनोरके दुःखों से छुटकारा पाने के लिए एक सोनेके रोमोंवाले मेष ( भेड़ ) पर चढ़ कर स्वर्गलोकको भाग गये थे । जैनग्रंथोंमें जीवन्धर स्वामी कथा बहुत प्रसिद्ध है । उनके पिता सत्यंधरने अपने मंत्री काष्ठाङ्गारके द्वारा अपने वंशच्छेद होनेके भयसे अपनी गर्भवती पत्नीको मयूरयंत्रमें बिठाकर आकाशमार्ग से उड़ा दिया था । जीवंधरचरितसे मालूम होता है कि यह यंत्र मोरके आकारका होता था और शायद चावीके बलसे चलाया जाता था । अँगरेजी ग्रंथों में भी ऐसी बहुतेरी कहानियाँ पाई जाती हैं । जाटलेंडके राजा निडाङ्गके आदेशसे उनके नौकरोंने जब बयेलैंड नामके एक अपराधी के दोनों पैरोंके पंजे काट डाले थे, तब वह राजाके अत्याचारोंसे रक्षा पानेके लिए एक प्रकारका जामा तैयार करके उसकी सहायतासे अपने देशको उड़ गया था। आरब्य उपन्यासों के उड़ने वाले गलीचे और पारस्य उपन्यासोंके उड़नेवाले सन्दूकोंकी कहानियाँ सभी जानते हैं । इस तरह प्रत्येक जातिके पौराणिक ग्रन्थों आकाशभ्रमणकी दो चार कहानियाँ अवश्य बहुत पुराने समय से मनुष्य के हृदयमें आका - मिलती हैं ! इन सब बातोंसे जाना जाता है कि मनुष्योंके मनमें आदिम काल से पक्षियों के समान आकाशमें भ्रमण करनेकी इच्छा चली आती है और वायु मंडलंपर प्रभुत्व जमाने के लिए बहुत से काल्पनिक उपायोंकी उद्भावना करके उन्होंने बहुत कुछ परितृप्ति भी प्राप्त की है। एक समयका उक्त काल्पनिक विषय कालक्रमसे आज सत्यके रूपमें बदल गया है - मनुष्यों का बहुत दिनोंका परिश्रम सफल हो गया है । मनुब्यने साधनाके बलसे न जाने कितने बाधा विघ्नोंको हटाकर, कितने जीवनसंग्रामों में विजयलाभ करके सफलता पाई है - संसारका इति हास इस बातका साक्षी है । मनुष्य किस तरह क्रम क्रमसे प्राकृतिक - शक्तियों को अपने वशमें क्रिया है, इसके रहस्यमय इतिहासकी खोजपर मनुष्य सदैव उत्सुकता प्रगट करता रहेगा । मनुष्य के कल्पना -जगत से बाहर होकर व्योमयानने किस प्रकार वास्तविक स्वरूप धारण किया और मनुष्यों के परिश्रमको सफल किया - इसका विवरण बहुत ही कौतूहल बढ़ानेवाला है 1 Jain Education International इटली देशके लेखक ' लियोनार्दो दा भिश्चि' ने सबसे पहले ( सन् १४५२ - १५१९ ) अपनी ग्रंथावलीमें आकाशमार्ग में भ्रमण करनेका एक उपाय लिखा था । कहा जाता है कि उसीने सबसे पहले कल्पनाकी वस्तुको वास्तविकरूप देनेका उपाय लिखा है । वह लिखता है-पक्षियोंके समान कई एक पंखे मनुष्यके For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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