Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 04 05
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 53
________________ SHARMATIBILITATALAILABLETELLIGHTLIRAIMEDIA वायुयानोंका इतिहास । Uயோகாாாாாாாாாாசா ED उन लोगोंमेंसे जनरल मयेसनियका नाम एक व्योमयान बनाया। यह व्योमयान जुलाहके विशेष उल्लेखनीय है । वह आजसे प्रायः डेढ़ सौ करघेके सिटलके आकारका था । इसकी लम्बाई वर्ष पहले व्योमयानको स्वेच्छापूर्वक चलानेके १४४ फुट थी। इसके मध्यके फूले भागकी परिधि लिए जिन सब उपायोंका उल्लेख कर गया है, ४० फुट थी और भीतर ९००० घन फुट जगह वर्तमान समयके व्योमयान उन्हीं सब उपायोंके थी। इसका ऊपरी भाग रस्सियोंके जालसे आअवलम्बनसे बनाये जाते हैं। उसके मतसे च्छादित था और नीचेभागमें ६० फुट लम्बी बलूनको लम्बी आकृतिका बनाकर उसके उप- एक लकड़ी कई रस्सियोंकी सहायतासे लटकती रिभागको आवरणसे ढंक देना चाहिए, फिर हुई ऊपरी जालके दोनों छोरोंसे जुड़ी थी। कई उसमें एक त्रिकोण पालको जोडकर उसमें गरम रास्सयोंकी सहायतासे इस लकड़ीमें एक नौका वायुसे भरी हुई थैलियाँ बाँध देना चाहिए और लटकाकर उसपर ३ घोड़ोंकी शक्तिवाला एक बेलूनके पिछले भागमें स्टीमरके चाकके समान एंजिन रक्खा जाता था। यह एंजिन बिजलीके एक चाक लगाना चाहिए । मयेसनियकी पंखेके समान तीन फलके एक पंखेको हर एक पद्धति पर बनाये हुए बेलूनका चाक मनुष्य मिनिटमें ११० बार घुमाता था। गिफार्डके आविष्कृत व्योमयानमें दो दोष द्वारा घुमाया जाता था। सन् १७८४ इ० में पारी नगरके राबर्ट थे-पहला, व्योमयानसे नौका जिसतरह लटकाई नामके दो भाइयोंने एक बेलुन बनाया । उसका गई थी, उससे चलते समय व्योमयान कम्पित न होने पर भी एंजिनके काँपनेसे सारा व्योमयान आकार खंभेके समान था, परन्तु उसके दोनों छोर अर्धगोल ( Hemispherical ) थे । कंपित हो उठता था; दूसरा, व्योमयानमें हैड्रोउन्होंने इस बेलूनको दांड़े (पतवार ) की जन वा कोयलेकी गैस ( Coal gas ) के स. मान किसी गैसको भरकर उसके पास अग्नि रस्वसहायतासे चलानेकी चेष्टा की थी। पहली साल ० नेसे जो अनर्थ हो सकता है, उसे सभी अनुमान तो उनकी मिहनत सफल न हुई, परन्तु दूसरी कर सकते हैं। मि० गिफार्डने इन दोषोंको भी सालके उद्यमसे उनका बेलून आकाशमें गोला- बहत कछ दूर कर दिया था। उनका यह व्योमकृतिमार्गसे घूमने लगा। यान प्रतिसेकंड ६ से ८ फुट तक चल वैज्ञानिक जगतमें भाफ पैदा करनेवाले यंत्र सकता था। ( Steam boiler) और जल पहुँचानेवाले तीन वर्षके बाद इस वायुयानमें और भी कई यंत्र ( Injector ) का आविष्कार करनेके सुधार हुए । आकाशमार्गमें चलते समय व्योमकारण मि. गिफार्डका नाम सर्वत्र परिचित है। यानके प्रतिकूल चलनेवाली हवाके वेगको कम वे बहुत दिनोंसे एक हल्के और बहुत शक्तिवाले करनेके लिए इसके आकार और अनेक भाएंजिनको बनानेमें व्यस्त थे और उसके फल- गोंमें बहुत परिवर्तन किया गया । मि० गिफार्ड स्वरूप उन्होंने १ मन दस सेर भारी, और ५ इस वायुयानमें बैठकर हवाकी गतिके विरुद्ध चघोड़ोंकी शक्तिवाला एक एंजिन तैयार किया लनेमें समर्थ तो हुए परन्तु उतरते समय पृथा। उसने देखा कि ऐसे एंजिनकी सहायतासे थ्वीसे टकराकर वह सारा यान नष्टभ्रष्ट होगया। व्योमयान स्वेच्छापूर्वक चलाया जा सकता है। इसके बाद उन्होंने और भी कई व्योमयान बअतएव उसने सन् १८५२ ई० में पारी नगरमें नाये; परन्तु उनमें और कोई विशेषता नहीं थी । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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