Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 04 05
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 55
________________ 1 । मि० वेनहोमने बहुत दितोंतक पक्षियोंके उड़ने की प्रणालीका अनुसंधान करके सन् १८६६ में यह निश्चय किया कि जब कोई समतल चीज वायुमण्डलमेंसे होकर जाती है तब वायु उसके ऊपरकी ओर जो दवाव डालता है वह उक्त सब स्थानोंमें एकसा प्रयुक्त नहीं होता; केवल सामने के कुछ ही अंशोंमें प्रयुक्त हुआ करता इस लिए विमान के सामनेके भागको विस्तृत न बनाके उसे लम्बाई देकर बनाना उचित है उन्होंने इस बातपर भी लक्ष्य किया कि एक बड़ा पक्षी अपने दोनों पंखोंको एक ही साथ हिलाकर शान्त भावसे सहज ही चला जा सकता है । इससे उन्होंने यह सिद्धांत निकाला कि पक्षीके उक्त अवस्थामें उड़ते समय वायुकी अत्यन्त पतली तह अपने स्थान से हट जाती है; अतएव वायुमण्डलमें चलने के समय यदि किसी भारी पदार्थको ले जाना हो तो पूर्वोक्त सामने के भागके समतलोंकी संख्या बढ़ानी होगी और उन सबको समान्तराल भावसे, बीचमें थोड़ेसे लम्बाईके भागको छोड़कर, एकके ऊपर एक स्थापित करना होगा । मालूम पड़ता है कि इसी आधार पर ट्राईप्लेन आदि सृष्टि हुई है । मि० वेनहोमने गंभीर पर्यवेक्षण करके उपरिलिखित जिन सत्य का आविष्कार किया था उनसे वैमानिकों को बहुत लाभ पहुँचा और इसी कारण, मि० वेनहो की कीर्ति संसारमें अचल रहेगी । मि० वेनहोमके आविष्कृत तत्त्वोंकी परीक्षा करके फिलिप्सने एक यंत्र निर्माण किया । परीक्षा द्वारा देखा गया कि वह यंत्र जमीन से सहज ही आकाश में उड़ सकता है किन्तु उड़ते समय साम्यावस्थाभें नहीं रह सकता था । ऐसे बेलूनको Captive Baloon या 'बन्दी - बेलून ' कहते हैं। क्योंकि उसे एक स्थान पर Jain Education International इतिहास । रस्सीसे बाँधकर चारों ओर घूमकर देखभाल करने के काम में ला सकते हैं- आने जानेके काममें नहीं । इसके बाद ही अमेरिका, जर्मनी, इंग्लेंड, फ्राँस आदि देशों में बेलूनकी उन्नति के लिए खूब ही प्रयत्न होने लगे । अमेरिका और जर्मनीने इस काम में सबसे पीछे हाथ डाला था । २३१ अमेरिका के प्रसिद्ध पदार्थविज्ञानविद् मि० एस. पी. लेङ्गलिने गहरी गवेषणा करके व्योममानोंकी खूब उन्नति की थी, इसी समय से परीक्षक लोग पक्षीके आकारके छोटे छोटे और फिर बड़े बड़े यान प्रस्तुत करके पर्वत या किसी ऊँचे स्थानोंपरसे बैठकर नीचे जमीनमें आनेकी चेष्टा करने लगे । इस काम में सबसे पहले अटो लिलियेन्थाल नामक एक जर्मन इंजीनियरने प्रयत्न किया ! उसकी परीक्षा-प्रणाली अभीतक संसारभर में प्रसिद्ध है । उसने पक्षियों के परोंके समान दो पर अपनी पीठपर लगाकर देखा कि वह ४५ फुट ऊँची जगहसे उड़ कर प्रायः ४५० फुट दूरीतक अपनी इच्छानुसार हाथ पैर हिलाकर और दिशा बदल कर उड़ सकता है । फिर उसने मोटरकी सहायता से परीक्षा करने के लिए प्रत्येक बाजू पर दो समतल पठिवाले वायुयानों को निर्माण किया । उसकी इस प्रणालीको ग्रहण करके अमेरिकामें हेरिंग, इंग्लेंडमें पिल्सार और फ्राँसमें फारवार नामक व्यक्तियोंने वायुयानोंकी खूब उन्नति और सुधारणा की । पिल्सारकी इस गवेषणा के बाद इंग्लेंडमें और कोई मौलिक गवेषणा नहीं हुई । केवल कोड और ए. वी. रो इन दोनों विमान - विहारियोंने एक ट्राईप्लेनका उपयोग किया था । राईट नामके दो भाइयोंने लिलियेन्थालकी गवेषणा ( खोज ) प्रणालीका अध्ययन करके For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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