Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 04 05
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 27
________________ ३ आदमी-वह समझे था कि मैं कभी गजल। नहीं मरूँगा। प्राण-रक्षामें सदा २ आदमी--तो यह प्रमाणित हुआ कि प्राणान्तका है सामना । दौलतराम सेठको भी मौत नहीं छोड़ती ! जानकर यह, कौन करता, ४ आदमी-खूब कहा-हाः हाः हाः हाः- जन्मकी फिर कामना ॥ ५ आदमी-हाः हाः हाः हाः भोर होते नींद खुलती, दौलत०--ये लोग तो खूब खुश देख । हर घड़ी आफत खड़ी। आयुको अपनी बिताना, १ आदमी-बुड्डा बड़ा सूम था। घोर है शव-साधना ॥ २ आदमी-आफ़त गई। स्नान करते भूख लगती दौलत०--एहसानमन्द हूँ। है सुलगती आगसी। ३ आदमी-वसीयतनाममें ज़रूर हमलो- तब जुटाना अन्नका, गोंके लिए कुछ लिख गया होगा। उसको निगलना चाबना ॥ दौलत०--(अँगूठा दिखाकर ) एक पैसा अन्न चुकजाता, न बुझती भी नहीं। पेटकी ज्वाला अहो। : ५ आदमी--किसीको तो दे ही गया होगा। नोन है तो घी नहीं, दौलत०--किसीको नहीं । संयोग कुछ ऐसा बना ॥ ६ आदमी–साथ में ले जा सकेगा नहीं! लेटते ही मक्खियाँ दौलत०--सन्दूकें न ले जा सकूँगा, चा- दिनको हमेशा दिक करें। भीका गुच्छा तो ले जा सकूँगा। रातको फिर मच्छड़ोंका २ आदमी- दूसरे जन्ममें सिर पीटेगा। __जुल्म होता है धना ॥ • दौलत०-सिर पीटनेको तो जी अभी हाय, आधी रातको चाहता है। जेवर जड़ाऊके लिए। ३ आदमी-आप न कुछ खाया न पिया- रूठना रोना प्रियाका देखो तो! मिनमिनाना माँगना ।। दौलत०-भाई अब ऐसा न होगा । दिनको चीज लो तो दाम उसके अंगूर वगैरह मेवा और रातको बढ़िया भोजन ! माँगते हैं फिर असभ्य । . ४ आदमी-अब उसके दोनों लड़के सारी राह रोके हैं महाजन दौलत उड़ावेंगे। और करते लुचपना ॥ - दौलत०-छोड़ जाऊँगा, तब न ! ब्याह करते ही कई ५ आदमी-अच्छा अब गाओजी ! बच्चे भी हो जाते हैं ढेर । दौलत०–अच्छा गाओ, सुनूँ । ब्याहनेमें औ पढ़ानमें __ (सबका गाना) दिवाला पीटना ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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