Book Title: Jain Gitavali
Author(s): Mulchand Sodhiya Gadakota
Publisher: Mulchand Sodhiya Gadakota

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Page 8
________________ जिन सजनोने इस पुस्तकके सग्रहमें प्राचीन तथा निजकृत नवीन गीत भेजकर सहायता किई है वे धन्यवाद के पात्र है और विशेष धन्यवाद के पात्र बम्बई निवासी श्रेष्ठिवर माणिकचन्दजी जे. पी. और उनकी सुपुत्री विदुषी मगनवाईजी है जिनकी प्रेरणासे यह ग्रंथ संग्रह हुआ है। __ यदि इस पुस्तक के द्वारा जैनजाति का कुछ भी उपकार होगा तो मै अपना परिश्रम सफल समझेगा. कार्तिक वदी १४ सं०६५ । मूलचन्द सोधिया, श्रीवीर निर्वाण सम्वत् २४३४ गढ़ाकोटा, जि० सागर. ___ ग्रंथ शुद्धाशुद्धि पत्रपृष्ठ-पंक्ति अशुद्धि शुद्ध ग्रंथ १९ ५,६ सुमतीदेय सुमति कुमती देय कुगति २३ १२ हाय होय थुति तुखार तुषार पथ पद २६ १८ युति

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