Book Title: Jain Gitavali Author(s): Mulchand Sodhiya Gadakota Publisher: Mulchand Sodhiya Gadakota View full book textPage 7
________________ भूमिका प्रगट रहे कि कालगति अथवा अन्य लोगों की सङ्गति के कारण जैन सरीखी उत्तम जाति की स्त्रियों में भी मङ्गलीक गीतों की जगह निंद्य और फूहड गीतों के गाने की पद्धति चल निकली है. इस कुप्रथा के निवारणार्थ कुछ काल पूर्व चन्देरी (बुन्देलखण्डपान्त) के धर्म प्रेमी भाई जी श्रीयुत गिरवरदासजी, देवीदासजी आदि सजनों ने स्त्रियो के गाने योग्य उत्तम २ धामिक गीत रचकर प्राचीन पवित्रप्रथा का जीर्णोद्वार किया था. तिसही का फल है कि वर्तमान में बहुधा बुन्देलखंड प्रान्त की धर्मबुद्धि स्त्रियां उत्तम २ शिक्षादायक गीत गाती है. किसी को दो, किमी को चार याद है परन्तु ऐसा पुस्तकाकार सङ्ग्रह कोई भी नहीं, जिसमें हरएक अवसर पर गाने योग्य दो २ चार २ गीत हों. इसलिये चन्देरी, बंडा, सागर आदि स्थानों से एकत्र करके ये पुस्तक संग्रह किई गई है. इस सत्कार्य का यश उपर्युक्त महाशयों का है, हां इतना अवश्य है कि कई जगह लोगों ते जैनमत के विरुद्ध गब्द मिला दिये है, जिनको मैने अपनी तुच्छबुद्धि अनुसार संशोधन कियाहै, तिसपरभी दृष्टिदोप अथवा प्रमादवश इसमें कोई अशुद्धि रह गई हो या पाठान्तर होगया हो तो उस दोष का भागी मैं हूं. अतएव सजन मण्डली से निवेदन है कि जो भूलें उनको इस पुस्तक में ज्ञात हो वे कृपया मुझे सूचित करें ताकि पुनरावृत्ति में उनका मार्जन किया जाय ।।Page Navigation
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