Book Title: Jain Gitavali
Author(s): Mulchand Sodhiya Gadakota
Publisher: Mulchand Sodhiya Gadakota

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Page 5
________________ श्री वीतरागायनमः ॥ जैन गीतावली ॥ पुनोत्पत्ति, ज्यांनार, विवाह. मुण्डन, वन्दनादि मुनयः सरों पर सियों केगाने योग्य उत्तम गीतों का समर. । श्रीयुत श्रेष्टिवर माणिकचंदजी जे०पी० बम्बई निवासीसी नुपुत्री विदुषी मगनबाई जी की इच्छानुसार. मूलचन्द सोधिया-गढ़ाकोटा (जिला मागर ) द्वारा संग्रहीत. - मुंबई-"निर्णयमागर" प्रेगमे यान गमचद्र पारद्वारा नुहित. प्रथमावृत्ति १०००] जैन सं०२४३५ स०६९०९[मून्य ।। - Ret of

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