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जो श्रेष्ठ हैं शरण, मंगल कमजेता, पागध्य हैं परम हैं शिवपंथ नेता । हैं वन्द्य खेचर, नरों, अमरों. मुनों के, वे ध्येय पंच गुरु हों हम वालकों के ।। ६ ।।
है घातिकमंदल को जिनने नशाया, विज्ञान पा मुख ज्वलन्त अनन्त पाया । है. भानु भव्यजनकंज विकामते हैं, गुद्धान्म की विजय ही, अरहन्त वे है ।। ७ ॥
कनंव्य था कर लिया कृतकृत्य दृष्टा, हैं मुक्त कम तन मे निज द्रव्य स्रष्टा ! है दूर भी जनन मृत्यु तथा जरा मे, वे सिद्ध मिद्धिमुख दें मुझको जरा मे ॥ ८ ।।
ज्ञानी, गुणी मतमतान्तर ज्ञान धारे, मबाद में महज वाद विवाद टारे । जो पालते परम पंच महाव्रतों को, प्राचार्य वे मुमति दे हम मेवकों को ॥ ९ ॥ मनानरूप तम में भटके फिरे है, ससारिजीव हम है दुख मे घिरे है दो ज्ञान ज्योति उवझाय ! व्यथा हरो ना!! ज्ञानी बनाकर कृतार्थ हमें करो ना !!!॥१०॥ अत्यन्त शान्त विनयी समदृष्टि वाले, गोभे प्रशस्त यश से शशि से उजाले । हैं वीतराग परमोत्तम शीलवाले, वे प्राण डालकर साधु मुझे बचा लें ॥११॥
समणसुतं