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मंस्थान, संहनन, ना कुछ ना कलाई, ना वर्ण, स्पर्श, रस, गंध विकार भाई ॥ ना तीन वेद, नहि भेद, अभेद भाता , गुद्धात्म में कुछ विशेष नहीं दिखाता ॥१८३॥
पर्याय ये विकृतियां व्यवहार से हैं, जो भी यहाँ दिख रहे जग में तुझं हैं। 4 सिद्ध के मदृश हैं जग जीव सारे, नू देख शुद्धनय से मद को हटा रे ! ॥१८४।।
प्रात्मा सचंतन प्ररूप अगन्ध प्यारा, अव्यक्त है अरस पीर प्रशब्द न्यारा । आता नहीं पकड़ में अनुमान द्वारा, मम्थान से विकल है सुग्व का पिटारा ॥१८॥
पात्मा मदीय गंतदोष प्रयोग योगी, निश्चित है निडर है निविलोपयोगी, निर्मोह, एक, नित, है सव संग त्यागी, है देह मे रहित, निर्मम, वीतरागी ॥१८६।।
सन्तोष-कोष, गतरोप, अदोप, ज्ञानी, निःशल्य शाश्वत दिगम्बर है अमानी। नीराग निर्मद नितान्त प्रशान्त नामी, प्रात्मा मदीय, नय निश्चय से अकामी ।।१८७॥
ना अप्रमत्त मम प्रातम ना प्रमत्त, है शुद्ध, शुद्धनय से मद-मान-मुक्ते । ज्ञाता वही सकल-जायक यों बताते, वे साषु शुद्ध नय प्राश्रय ले सुहाते ॥१८८॥
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